Monika Aggarwal  
33 Followers · 46 Following

read more
Joined 25 August 2021


read more
Joined 25 August 2021
21 JAN AT 15:42

मझधार में फंसी है कश्ती, क्या करे?
किनारों का पता नहीं और डूब भी नहीं सकती
तैर भी नहीं सकती, पानी आंसुओं से भरl है
कुछ यूं किस्से बनते हैं, सूरज को देखकर कि कल का सफर कुछ नया होगा,
कुछ नया होगा पानी का रंग, पर वही शक्ल जो दिखती है मायूस।
रहती है बैठी उस कश्ती में, जिसके पास कोई आ नहीं सकता, न वो किसी के पास जा सकती।
भरे पानी के आसपास और पानी है जो पानी पर ही खत्म हो रहा है,
रह रह कर कह रही है कि
पानी तू खत्म कर नहीं सकती और बढ़ाने के लिए बारिश आ नहीं सकती।
ये कैसा सफर है, जहाँ रास्ता बनाने के लिए रास्ता ही नहीं दिख रहा।
बनाने की कोशिश हमेशा रहती है बस वही कि ये ख्वाब किसी से कह नहीं सकती।



-


10 JAN AT 23:52

हर दिन जूझना कैसा होता है
कैसा होता है उस दौड़ में दौड़ना जो तुम्हारे लिए बनी ही न हो
मुस्कुराते हुए उस पत्थरीले जख्म को छुपाना कैसा होता है
पूछा तो मालूम हुआ रोज जैसा होता है
ज़िन्दगी का सफर मुस्कुराहट सा है
एक कोने से दूसरे कोने तक का सफर
खुद को सताने का सफर
ना काम आने का सफर
कैसा होता है रोना बिना आंसूओं के
जवाब आया रोज जैसा होता है
जानने की भीड़ में जाना होता खुद को थोड़ा ज़्यादा
खुद से किया होता वादा तो कैसा होता
रुके हुए चलना ज़्यादा समझा जाना होता तो कैसा होता
जवाब आया रोज जैसा होता

-


8 DEC 2024 AT 19:30

"यादें भी अब महंगी हो गई हैं,
हर पल की कीमत चुकानी पड़ती है।"

-


9 AUG 2024 AT 12:49

एक अनदेखी अनजानी दुनिया,
जहाँ मैं मैं हूँ,
खुद को अपनाती हूँ,
बिना किसी गिले-शिकवे,
खुद को समझती हूँ।
जो नहीं चाहिए, भूल जाती हूँ,
खुद में ही घुल जाती हूँ।
रहती हूँ अपनी धुन में,
दुनिया की कम सोचती हूँ।
हर काम से खुद को न रोकती हूँ,
टोकती नहीं खुद को,
हौसला देती हूँ।
रास्ते का काँटा बनती नहीं,
उन्हें खुद हटाती हूँ।
एक ऐसी दुनिया जिसे मैं जी पाती हूँ,
और जिसे मैं जीना चाहती हूँ।

-


8 JUL 2024 AT 22:15

"Not knowing is knowing enough when knowing is not enough."

-


20 JUN 2024 AT 11:06

Bikhar jati hai kashtiyan lehro ki tarah
Sambhal ke rakh pao to hi kehna

-


17 JUN 2024 AT 15:18

"I hate myself often, but most of all when I can't stop it."

-


31 MAY 2024 AT 21:18

Paid Content

-


24 MAY 2024 AT 22:48

ज़िंदगी झरोखे से झाँक रही है,
और हम दरवाज़े पर आस लगाए बैठे हैं

-


1 MAY 2024 AT 22:40

खुशियाँ भी इतनी आसानी से नहीं मिलतीं, खुद को खुद से हंसाना पड़ता है।

रोता हुआ खुद को छुपाना पड़ता है।
बहुत कुछ खुद को सुनाना पड़ता है।
गिरता हुआ आंसू उठाना पड़ता है।
झूठा-झूठा मुस्कुराना पड़ता है।

खुशियाँ भी इतनी आसानी से नहीं मिलतीं,
खुद को खुद से हंसाना पड़ता है।

कई बातों पर मानना पड़ता है।
ना चाहो तब भी चाहना पड़ता है।
जागते हुए भी खुद सुलाना पड़ता है।
आदतों को भूलाना पड़ता है।

खुशियाँ कहाँ इतनी आसानी से मिलतीं,
खुद को खुद से ही हंसाना पड़ता है।

-


Fetching Monika Aggarwal Quotes