माँ
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हर कोई तो माँ के प्यार को जनता है
पर मैने तो उन छिपी हुई कुर्बानियों को देखा है
जो कुछ इस प्रकार है
सुबह पाँच बजे उठकर
घर के सारे काम निपटा कर
सब को खाना देकर
खुद देर से क्यों खाती हो?
माँ ये सब तुम कैसे कर लेती हो?
सारे दुख, कष्ट सहकर
दर्द को अपना बनाकर
अपनी सारी इच्छाओं को मारकर
अपने चेहरे पे एक खिलता हुआ झूठा मुस्कान कैसे ले अति हो?
माँ ये सब तुम कैसे कर लेती हो?
दुसरो के लिए कुर्बानियाँ करना
अपनी बिल्कुल फिक्र न करना
हर चीज़ में दुसरो का सहारा बनना
और अपना अस्तित्व मिटा देना
ये सब तुम कहाँ से सिख लेती हो?
माँ ये सब तुम कैसे कर लेती हो?
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