पास आ गए हम बहुत, दूर रहते तो बात बनती, आग की गर्माहट बहुत थी, हम बर्फ बनते तो बात बनती, बिना उसे सुने न जाने क्या क्या कह डाला हमने उसे, हम थोड़ा चुप रह जाते ,तो बात बनती।।
बातें गूँजा करती थीं तुम्हारी कानों में कभी, न जाने कहाँ चले गए तुम, अब कभी कुछ लफ्ज़ मेरी इस मुर्दा रूह में फूंक दो, तुम जानते नहीं, अब ये सन्नाटा ,बहुत चुभता हैं।।