बड़े होने का फ़र्ज़ कुछ इस तरह निभाया मैंने,
टूटा, बिखरा ख़ुद पर सबको अपनाया मैंने।
माना की मुझसे जुदा होकर ज़िन्दगी सम्भाली न गई तुझसे,
तिल तिल मरे इश्क़ में हम भी इश्क़ में पर, सारे घर को सम्भाला है मैंने ।।-
तुम शब्दों के मायने तलाशते रहे , और मुझे तुम्हारी रूह में उतरना था!
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हमारे इश्क़ कि क़द्र कहाँ उनको यारों
इक मुस्सर्रत पे जिनकी सारा जहाँ लुटाते थे!-
अज़ीब कश्मकश है ज़िंदगी में
मैं तेरी हर ख्वाहिश पूरी करना चाहता हूँ
पर तेरी ख्वाहिश ही कोई और है। !!!-
तुम्हारा मेरी बातों का जवाब देना तो ठीक है जाना!
मगर जब पूछ लेती हो कुछ पलट कुछ
मेरे बारे में,
बस वही दिल हार जाता हूँ!-
उन्हें लगता होगा , हमे ग़ुरूर बहुत है,
समझायें कौन भोली को , इश्क़ में हम टूटे बहुत हैं!-
बात तो रोज़ होती है ,
पर अब वो बात नहीं होती।
यूँ तो रोज़ मिलती है निगाहें उनसे
अब वो हसीन मुलाक़ात नहीं होती॥-
और फिर उनसे न कभी बात हुई ना मुलाक़ात हुई
सबसे ख़ास थे एक वक़्त जो हमारे!-
समेट लिया है ख़ुद को अब ,
के टूटे तेरे इश्क़ में मुद्दत हो गई है।
पता है , हँसता भी हूँ मैं ,
यूँ तन्हाई से मोहब्बत हो गई है।-
कितनी अज़ीब बात है ज़िंदगी के सफ़र की,
तुम्हारे बिन तनहा भी है , और तुम्हें याद भी नहीं करना चाहते!-