कुर्ता...
मेरे कमरे के दरवाजे के पीछे तंगा कुर्ता,
देखता है हर आहट पर दरवाजे की आड़ में छिप-छिप के, की कहीं तुम आई हो क्या?,
उसे भी है इंतज़ार की तुम आओगी और मेरे कमरे में कहीं गुम सी पड़ी हुई सुई, जो अक्सर ही ऐन मौके पर ऐसे गुम हो जाती है जैसे तुम,
उस सुई से सिल दोगी, मेरी मेज़ पर पड़े कुर्ते के टूटे बटन को कुर्ते से, जिसके साथ ही शायद जोड़ोगी तुम मुझ संग वो पहले जैसे संबंध, जो तुम ऐसे तोड़ चली थी, जैसे बटन सियने के बाद, बेहद करीब आकर कोई दांतो से तोड़ जाता है धागे को...-
यह दिवस है वीर सैनिक महान का,
उनके गौरव का और बलिदान का।
जब दांव लगा था देश का और देश के सम्मान का,
उन्होंने त्याग किया जवानी का, ऐश और आराम का,
हिमालय सफेद रहा नहीं रंग था पूरा लाल का,
रक्त में शोले भरे थे वह काल था काल का,
चीख उठी थी धरती माँ वो दृश्य था ललकार का,
व्यर्थ ना जाए बलिदान वीरो का वह वक्त था पटवार का,
यह दिवस है वीर सैनिक महान का,
उनके गौरव का और बलिदान का।-
तुम्हारे जाने के बाद तुमसे नाराज़ होने वालों में से, मैं और मेरी बड़बोली कलम के अलावा मेरी दीवार पर टंगा कैलेंडर भी था।
हवा जब कभी भी दरवाजे पर दस्तक देती, मैं तुम्हे सोचकर उस तरफ देखता था, पर जब तुम्हारे न होने की मायूसी लेकर नज़रे वापिस ही आ रही होती, तब कैलेंडर को हवा के ज़ोर से उड़ता देख लगता था कि अगर ये कील से बंधा न होता तो तुम्हारे आने की खुशी में यकीनन आगे बड़ के दरवाजे तक तो आ ही जाता।
हवा से नाराज़ होकर फड़-फड़ की आवाज में ये मुझे भी डांटता है, मानो कह रहा हो कि, पिछला साल भी चले गया और तेरा प्यार भी, पर अभी तक तू वही है उन यादो में बर्बाद सा।
साल पूरा होने पर भी मैने वो कैलेंडर नही बदला, कैसे हटा दूँ वो तारीख जिस दिन हम मिले थे, जिस दिन मुझे तुम्हरा नाम पता चला था और इसी साल की किसी तारीख को छोड़ चली थी तुम...-
तेरा यौवन नही, तुझ में छिपा बचपन ढूंढता हूँ,
मैं अपने उम्र के लड़कों को तरह नही,
उनसे अलग सोचता हूँ।
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मुस्कुराते तो होंगे कई, तुझे देखकर,
तुझे देखकर, मेरा चेहरा खिल उठता था।-
देखो-देखो वसंत आ गया!
सूरज की किरणों में लिपट कर,
ओस की बूंदों में छिप कर,
आसमान भी महक रहा हो जिससे,
वो वसंत आ गया,
देखो-देखो वसंत आ गया!
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देखा है मैने अपनी मौत को इतने करीब से,
कोई ज़िन्दगी भी छीन ले तो अब डर नही।
ये सांसे किराये की है, इंतकाम लाज़मी है,
जाना है एक दिन, ज़िन्दगी कोइ पुश्तैनी घर नही।-
तेरा करीब आना
जायज नही है यूँ तेरा मेरे करीब आना,
मेरे सपनो को भाता नही, तेरा मेरे करीब आना।
सर्दी की धूप, गर्मी की छाव जितनी हसीं है,
उतना हसीं है ये पल, तेरा मेरे करीब आना।
कायदे से, गलत है मैं अगर तेरा ख्वाब देखूं तो,
तभी मैने कभी चाहा भी नही, तेरे करीब आना।
वो वक्त आएगा ज़रूर, तुम आमीन कहो,
एक पल भी अगर तुम चाहो मेरे करीब आना।
बेवजह तो नही है, हज़ारो लकीरे हाथ मे,
एक मे तो लिखा हो तेरा मेरे करीब आना।-