कभी गले लग कर हमें आपके जिस्म की खुशबू से महकने दो....
क्योंकि अब ये बाज़ार में मिलने वाले इत्र नव को खुशी नहीं देते....— % &-
गुज़रता हूं मैं जब भी मेरे स्कूल के आगे से..
वो हर बार पूछ लेता है...जिंदगी इम्तिहान तो नहीं ले रही?
और नव चुप.....-
हर किसी को चुन कर भी उसकी ओर चला जा रहा हूं...
वो बेवफ़ा की मूर्त है... मैं वफाएं उसे सीखा रहा हूं...
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ये दिलों का खेल... एहसासों के साथ खिलवाड़ करता है...
दिल जो है ना फरेबी है...जो पल भर में प्यार करता है...
बातों ही बातों में दिल उस दिल का हो जाता है...
सीधे रास्ते पर जाते जाते भटक सा क्यों जाता है...
आसुओं से भिगोता है जिस्म.. हर हद को पार करता है...
दिल जो है ना फरेबी है...जो पल भर में प्यार करता है...
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ये ठंडी हवाएं गरम मौसम को सर्द कर रही है...
इस अधूरे इश्क़ में थोड़े बहुत रंग भर रही है....
सिलवटो का सिलसिला सन्नाटा करके चला गया...
कोई आया चुपचाप झूठा वादा करके चला गया...
केशुओ को उलझाएं... वो दिल में उलझन कर गई...
जो थी खनक जिंदगी की वो खनकते पैसों पे क्यों मर गई...
नव ने नैनों से फरमाया जो इश्क़ था कागज़ पर...
क्यों वो काग़ज़ को आज आधा करके चला गया....
कोई आया चुपचाप झूठा वादा करके चला गया...
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तेरी जिंदगी में मेरी थोड़ी बहुत कमी होनी जरुरी है...
तेरे जिस्म पर मेरे होठों की नमी होनी जरुरी है....
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#बेनाम शायरी
पिला देता हूं तुझे आज मैं जाम शायरी का....
दिखा देता हूं काग़ज़ तुझे बदनाम शायरी का...
आजा पास मेरे बैंठ जा कुछ देर तक तू....
मत पूछना नव से बस तू नाम शायरी का....-
थोड़ा बदलना भी लाज़मी था...
वो दिल थोड़ा पुराना था....
नया हां ये नया ज़माना था...
मुझे ख़ुद को इस क़दर भूलाना था...
थोड़ा तो शोर मचाना था....
इसलिए थोड़ा बदलना भी लाज़मी था...
सीधे रास्ते पर थोड़ा टेढ़ा चलना था...
उजाले से अंधेरे में ढलना था...
नए लोगो से रिश्ता बनाना था....
पानी पर घर को नव तैराना था....
साफ़ से दिल में थोड़ा फरेब लाना था...
इसलिए थोड़ा बदलना भी लाज़मी था...-
कभी वक्त निकाल के हमसे बातें करके देखना,
हम भी बहुत जल्दी बातों मे आ जाते है।।
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तेरी जिस्म की ख़ुशबू से हम महकते रहते है,
जब-जब तुझको सोचते है, बहकते रहते हैं....-