Mohit Kumar MK   (The Poetic Spoon)
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Joined 28 October 2018


Joined 28 October 2018
22 DEC 2023 AT 7:50

एक वर्ग का गुलाम हो जाता है,यहाँ हर कोई
इल्म होते भी बेज़ुबाँ हो जाता है,यहाँ हर कोई

वक़्त की रीत कहो या कहो उसकी किस्मत
बेच देता हैं कीमती समान,यहाँ हर कोई ...

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25 JUL 2023 AT 21:24

राहगीरों को कोई गुमराह करे क्यूं
बेवजह कोई किसी की परवाह करे क्यूं


रज़ा तो एकतरफा ही हैं न...
तो फिर वो तुझसे सुलह करे क्यूं

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11 NOV 2021 AT 18:55

बदलनी है थोड़ी अपनी हालात कुछ करूं
रहम बख्श और कर दे नींद निजात कुछ करूं

दरिया की बहती धार से बस एक बात है सीखी
अतीत को रख के पीछे आ शुरुआत कुछ करूं

सोच सब से हट के कर जाऊं मैं अलग
इन रंगीन दुनिया में खुराफात कुछ करूं

न गरजू तेज मैं मेघ सा,चुपचाप ही रहूं
बिना किसी सचेत के अकस्मात कुछ करूं

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27 OCT 2021 AT 13:09

कि उसके बिन अब यहां जी नहीं लगता
सब कुछ तो है फिर भी कुछ ठीक नहीं लगता

सुबह से शाम इतना मसरूफ होते हुए भी
रातों में यहां सुकून से नींद नही लगता


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25 OCT 2021 AT 23:25

सफ़ेद...

रंग सफेद का होना बहुत ही कठिन है।
ये रंगीन प्रकृति में, इस रंगो में खुद को समेटे रखना
बहुत कठिन है।
क्या गुजरती होगी उन औरतों पर जो अपने सुहाग से बिछड़ के खुद को सफेद वस्त्र में लपेट कर अपनी बची हुई ज़िंदगी को जीती होगी।
उस सफेद से लिबास में कोई दाग़ न लग जाए,न जाने कितनों से खुद को छिपाते फिरती होगी।
सफेद रंग पवित्र होते हुए भी असल में एक धब्बे से कम नहीं है,जो धब्बा किसी को नज़र तो नहीं आता मगर सफेदी में लिपटे वो शख्स उस धब्बे को वाकुफी महसूस करते है,हर रोज करते है।

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27 SEP 2021 AT 10:51

बेशक ये वक्त भी एक दिन फनाह हो जायेगा
जलने वाले खुद ही जलकर तबाह हो जायेगा

ये लोहे की बेड़ियां भला क्या रोके तुझे
तपती सूरज से भी तेरा सुलह हो जायेगा

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20 SEP 2021 AT 22:39

बदन में जो जुनून था,नहीं रहा
इश्क़ में जो सुकून था,नहीं रहा


हालात इतने बुरे है अब तो कि
जिस्मों में जो बहता खून था,नहीं रहा

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12 SEP 2021 AT 23:08

घुटती रही कुछ बात अंदर से
न लगी कोई दिल को खास अंदर से

मैं रहा ढूंढता एक परिंदो की तरह
न मिटी कभी वो प्यास अंदर से

जुदा हुए हमदोनों देखते ही देखते
न बात आई कभी ये रास अंदर से

वो उल्फत की नगरी ही कुछ अलग सी थी
वरन न होते हम इतने उदास अंदर से

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2 SEP 2021 AT 8:21

ये इश्क़ ही है जो बेशुमार हुए है
हम भला किसके गुनहगार हुए है

दूरियां चांद बना देता है हर पत्थर को
हम यूं ही नहीं इतने समझदार हुए है

हर इक लफ्ज़ में गज़ल ढूंढ लेता
अलग सी शक्ल में जैसे गुलज़ार हुए है

कौन यहां खुद को बेपर्दा करना चाहता है
कमबख्त दिल ऐसी चीज़ ही है जिसपे ऐतबार हुए है

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2 SEP 2021 AT 8:16

ख़त्म हो गई स्याही पहचान लिखते लिखते
न हो सकी पूरी मेरी अरमान लिखते लिखते

रहा बंद पिंजरों में जड़े परिंदो की तरह
अब सख्त करनी है ज़ुबान लिखते लिखते

कांटो से भरा आंगन में भी फूल पनपने लगे
हुआ जीना बहुत ही आसान लिखते लिखते

सबकी खबर है इसको,सबका पता ठिकाना
आगे बढ़े,और सीखते गए इंसान लिखते लिखते

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