है मजीद इतना ही ,
दो लफ़्ज़ मरहम के ,
कि ख़ैरियत पूछते हैं,
लोग अब भी मुझसे ..।।-
कुछ देर में नज़र आया ,
दस्तूर दिलों का ,
वरना हम भी सम्भल जाते ,
वक़्त रहते ..।-
रिश्ते
रिश्ता है पैसे का ,
कोई , रिश्ता अब अनमोल नहीं ,
कहाँ बगल अब झाँकूं मैं ,
क्या बचा कोई ,
जहाँ पर झोल नहीं ,
जहाँ दिखे है माया सबको ,
बिन रिश्ते , जुड़ जाते हैं ,
जहाँ दिखे हैं रूखी रोटी ,
रिश्ते किश्तों से बट जाते हैं ,
अपना-अपना कहकर जो ,
जो अपनापन दिखलाते हैं ,
वही अक्सर बीच राह ,
कभी भी रिश्ते नहीं निभाते हैं .।।
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जो घूम रहा धरा पर अपनी ,
वो हिन्दू हुआ बेचारा है ,
करकट काट रहा चुन कर ,
सबसे हुआ किनारा है ,
कोई भाव लिए लोभ का ,
अपना अपना चिल्लाता है ,
कोई अपना होकर भी ,
बस मूक बधिर सा बैठा है,
कितने तूफ़ान उठे हैं सन्नाटे मे ,
इसकी कोई थाह नहीं ,
ये हिन्दू है ,
मौन कटार है छाती में ,
है व्याकुल कटने को ,
बस काटना भूल गया ,
खुली हुयी हैं आँखें इसकी ,
बस जागना ही तो भूल गया ..।।-
कुछ रह गये लम्हे क़ैद निगाहों में,
कुछ दिल में क़ैद हैं ,
हम जी रहे हैं ज़िन्दगी ,
कभी निगाहों के सहारे हैं ,
कभी दिल के सहारे हैं ..।।-
तेरी यादों में , यूँ झूल गये ,
लिखे दो लफ़्ज़ और दो भूल गये ,
ख़ुशियाँ, मुस्कुराहट, सुकून , सब था ,
न जाने कहाँ , नामाकूल गये ..।।-
देखता हूँ जो , हालात ए दर्द कहीं ,
तो खुद की तस्वीर , नज़र आती है ,
कभी फिसलती है , कभी निकलती है ,
रेत सी है ज़िन्दगी ,कहाँ हाथ आती है ..॥॥-
जब ख़ामोश होता हूँ ,
अकेले में रोता हूँ ,
दिल समझता है सब ,
और चुप रहता है ,
जब नकार दिया जाता हूँ ,
और ठोकरें खाता हूँ,
दिल समझता है सब ,
और यही कहता है ,
देख सब में वही है ,
जो तुझमें रहता है ,
सच है बस यही ,
दिल समझता है सब ,
और चुप रहता है ..।।
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चलते वक़्त अब जा ठहर ,
न सुकून है अब किसी पहर ,
कितना सहेंगे सब,
तेरा क़हर ,
कुछ वक़्त दे आज़माने को ,
कुछ दे दे वक़्त मुस्कुराने को ..।।-
साज ढूँढता हूँ ,
कभी आवाज़ ढूँढता हूँ ,
खो गये हैं जो कहीं ,
वो एहसास ढूँढता हूँ ,
मैं रुख़ सितारों का किये बैठा हूँ ,
और चरागों में आस ढूँढता हूँ ..।।-