Anyone who ??????
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जो तुम कल थी,
आज वही हो
ना बदली थी ना बदली हो,
होगा कोई प्रेमी ही
जिसने तुमको बदला जी,
तेरी हंसी तेरी आंखे
कहती है तेरी बातें ।
वह अनपड़ था छोड़ गया
तुमने कितना पकड़ा जी ,
क्या जाने वह भी रोया हो,
तकिए से आसू धोया हो,
पर खैर जो बीत गयी सो बात गई
अब क्यों इतना इतराना जी 🙏
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वह जानती थी कि मैं उसे चाहता हूं,
ना जाने क्यूँ बस उसे चाहता हूं ,
चली गयी मुझे छोडकर दूर वह ,
चाहती तो होगी , वह भी मुझें ।
मेरी ज्ञान की बातों से अक्सर ,
वह ना जाने क्यूँ रूठ जाया करती,
उसका दिदार मैनें हद से ज्यादा किया,
चाँद भी मुझे थोड़ा मुरझाया लगा ।
झील से गहरी उसकी आंखो मे मुझे,
ना जाने क्यूँ , मुझे अपना चेहरा दिखा,
नयनों मे उसके जब बहते थे आंसू,
ना जाने क्यूँ मैं उससे ज्यादा रोया ।
मायूसी का आलम उसके चेहरे पर कई ,
ना जाने क्यूँ मुझसे पहले देखा ना कोई,
छोड़कर जाने में उसे वक्त ना लगा ,
मेरी कब्र पर आने का वादा किया ।
मोहब्बत का सुनहरा स्वप्नन तुम थी,
लौट आने की ख्वाहिश मेरी तुम थी,
तुम्हे छोड़कर मैं कहा तक चलूँ,
दफनाओ तुम तो कब्र कुछ भी नहीं ।
तुम्हारे लिए मेरी साँसें कम ना पङे,
चांद हो तुम मेरा कब्र तक मेरे चलो ।।
To be continued ...
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कई सपने हमने रखे हैं तरकश में,
बताओ तुम किसे निकाले रण में ,
संग किसे ले चले, हम सफर में
जो है छूटे या रूठे मेरे डगर में,
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ये जिंदगी का सफर तब तक रहेगा,
जब तक यह जिदंगी रहेगी ।
किसी गलियारे में पङी जरूरत अगर ,
तो यह हिंदी का 'सफर ' मौत तक रहेगी ।।-
इश्क की कश्ती में, मैं भी सवार
चाहा मैं उसको लेके पतवार ,
कहा नाव डुबी, पतवार छुटी
इश्क की चाहत मुझे ले डुबी ।
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कांकङ पाथर जोङकर ,, बिल्डिंग लिया बनाय
चैन सुख सब छोड़कर,, मन को लिया बढाय ।।-
"मजदूर"
तिल तिल मरता है मजदूर,
सर पर बोझा, तन पर धूर,
दिन भर चलता मेहनत करता,
दो रोटी से, पेट को भरता ।
पांवो को थमने नहीं देता,
बांहो को रोकने नहीं देता,
माथे से टप-टप गिरता है,
श्रमकण मोती-सा लगता है ।
तवे समान जब 'पग' तपता है,
गर्मी से जब, अधरा सूखता है,
कण-कण में आँसू गिरता है,
जब मेहनत मानव करता है ।
दो जून की रोटी के खातिर ,
कितनों की बातें सुनता है,
जब शाम को घर वह जाता है,
तब चूल्हा उसका जलता है ।।2।।
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मृत्यु अब बट रही है
मानो जैसे अमृत हो,
फट रही है छाती अब
माँओ कि जैसे धरती हो
काली घटा अब छाई है,
मृत्यु धरा पर आई है,
कितने को नींद में सुलाने
सवारी काल की लाई है
ले जाती है क्षण भर में,
शेष पड़ी अब यादें घर में
कई दिनो तक रोई आंखे
भूखे पेट बीती कई रातें
यादो में कितने दिन काटे
पड़ी घर में सुनी खाटें
जिस पर तू फैलाता बाहें,
उस पर निकली तेरी आहें
राम नाम तू जपते जपते,
मृत्यु लोक से जा रहा है,
यमदूत तुम्हें ले जाते जाते,
अश्रु नयन टपका रहा है
सांसे तेरी थम रही थी,
मंजिले भी रुक रही थी ,
घर का दीपक बुझ रहा था,
संग जो उसका छूट रहा था
आँखों में थे टूटे सपनें
छूट गए जो पीछे अपनें
माँ का आंचल टूट गया
धैय, पिता का छूट गया
धरती से मानव स्वर्ग गया
धन, दौलत सब छूट गया,
माया का बधंन छूट गया,
जब काल, उसे संग ले गया
अंत समय जब आता है,
शांति 'जीवन' कर जाता है ।।
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आग-सा तपता सूरज हूं मैं,
जल--सा ठण्डा मूरत हूं मैं,
झरने-सा गहरा दिल है मेरा,
जिसमें मूरत " मां " है तेरा ।।-