Mohib Mokashi   (© मोहिब मोकाशी)
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कसूर तो सोच का था
लेकीन
बदनाम अल्फाज हो गये
Joined 27 April 2020


कसूर तो सोच का था
लेकीन
बदनाम अल्फाज हो गये
Joined 27 April 2020
7 OCT 2024 AT 20:47

आठवणीतला पाऊस
छळतो फार
एक एक थेंब
काळजाच्या आर-पार

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7 OCT 2024 AT 20:41

जिंदगी अगर तन्हा जीने का नाम है
गुमनामी में रहना तो फिर भी आम है

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7 OCT 2024 AT 20:39

वक्त कहां किसी के लिए थमता हैं
सही या ग़लत फैसला होता हैं
वक्त तो सभी का एक जैसा होता है

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7 OCT 2024 AT 20:36

इंसान की फितरत ही ऐसी है
उसका वक्त आने तक सबर नहीं
सही वक्त जाए तो फिर कदर नहीं

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17 SEP 2024 AT 22:41

नफरतें तो इंसान के दिलों की फितरत हैं
बेजुबान तो आज भी अकिदा रखते हैं

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4 AUG 2024 AT 11:08

मन म्हणतं मला तु
यंदा फक्त रडायचं नाही
पण पावसाला कुठे कोणी
म्हणतं तु पडायचं नाही

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4 AUG 2024 AT 11:06

प्रत्येक हिशोबात मी
मागेच पडत आलो
यंदा नदी काठावरून
परतताना रडत आलो

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4 AUG 2024 AT 10:29

पावसात चिंब भिजल्यावर
अंग कसं शहारले पहीजे
भिजलेल्या अंगाला एकसारखे
तु मला निहारले पाहीजे

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23 JUN 2024 AT 22:06

रुसून बसते
गजऱ्या अभावी वेणी
किती गोड दिसते
'ती' हे सांगावं कोणी

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18 JUN 2024 AT 13:14

मैं लिखता नहीं वह मुझसे लिखवाता है
अंधा हूं फिर भी वह मुझे दुनिया दिखाता है

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