अगर है कोई ऐसी जगह तो बताओ दोस्तों,
एक अर्से से हम अकेले बैठ कर रोए नही है।-
खुद से मिलना अब, खुदा से मिलने जैसा लगता है,
ये काम भी मुझे अब, नामुमकिन जैसा लगता है।-
हम सा ना मिलेगा उन्हे पूरे शहर में कोई अब,
आखिर कौन करता खुद को बर्बाद कोई अब।-
खुद की नजरों में खुद अनजान से लगते है,
खुद के ही घर में खुद मेहमान से लगते है।
लोग देते फिरते है मिसालें हमारी हंसी की,
और हमें हम खुद में शमशान से लगते है।-
खींचवा दी है उसने बड़ी दीवार अपने घर की तरफ,
अगर अब हम मर भी जाएं तो उसे कोई फर्क नहीं।-
आंखों में नही छुपाते अब अपने दर्दों को हम,
कुछ लोगों के पास हुनर होता है आंखों को पढ़ने का।-
उनसे कहो कि यूं बार-2 ना मांगें हमसे हिसाब रोने का,
उन्होंने दर्द दिए हैं हमें, कोई दौलत नही।-
हमारी तो चलती रहती है रोज चांद से बातें, हम दोनो में कोई राज नही,
वो भी जमीं पर और हम भी जमीं पर, हम दोनो में कोई परवाज नही।
लोगों से मिलता है वो देर-सवेर, लेकर बहाना किसी ईद या त्योहार का,
मगर हकीक़त में, वो हमारे लिए किसी शाम या रात का मोहताज नहीं।-