Moheet   (Moheet)
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Joined 5 October 2017


Joined 5 October 2017
6 JAN 2023 AT 1:05

अगर है कोई ऐसी जगह तो बताओ दोस्तों,
एक अर्से से हम अकेले बैठ कर रोए नही है।

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18 NOV 2022 AT 9:29

दिल पर ताले और जुबां बांधनी पड़ेगी,
लगता है उम्र अब यूंही काटनी पड़ेगी।

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17 NOV 2022 AT 14:43

खुद से मिलना अब, खुदा से मिलने जैसा लगता है,
ये काम भी मुझे अब, नामुमकिन जैसा लगता है।

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4 NOV 2022 AT 0:00

हम सा ना मिलेगा उन्हे पूरे शहर में कोई अब,
आखिर कौन करता खुद को बर्बाद कोई अब।

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25 OCT 2022 AT 7:27

खुद की नजरों में खुद अनजान से लगते है,
खुद के ही घर में खुद मेहमान से लगते है।
लोग देते फिरते है मिसालें हमारी हंसी की,
और हमें हम खुद में शमशान से लगते है।

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23 OCT 2022 AT 0:07

आंखों में अपनी नदी सी लगती है,
हमें अब एक रात सदी सी लगती है।

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20 OCT 2022 AT 22:44

खींचवा दी है उसने बड़ी दीवार अपने घर की तरफ,
अगर अब हम मर भी जाएं तो उसे कोई फर्क नहीं।

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15 OCT 2022 AT 23:29

आंखों में नही छुपाते अब अपने दर्दों को हम,
कुछ लोगों के पास हुनर होता है आंखों को पढ़ने का।

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14 OCT 2022 AT 16:52

उनसे कहो कि यूं बार-2 ना मांगें हमसे हिसाब रोने का,
उन्होंने दर्द दिए हैं हमें, कोई दौलत नही।

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13 OCT 2022 AT 21:36

हमारी तो चलती रहती है रोज चांद से बातें, हम दोनो में कोई राज नही,
वो भी जमीं पर और हम भी जमीं पर, हम दोनो में कोई परवाज नही।
लोगों से मिलता है वो देर-सवेर, लेकर बहाना किसी ईद या त्योहार का,
मगर हकीक़त में, वो हमारे लिए किसी शाम या रात का मोहताज नहीं।

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