अजनबी नही हो तुम
क्या? यह मै मान सकता हूं,
तुम्हें पता है!
नहीं जानता मैं नाम के सिवाय
तुमारे,
मैने तुम्हें बताया तो था
कुछ अपने बारे मे ,
कुछ सामान्य है जो सब जानते है
शायद,
हां जो जग जाहिर है
नज़रे फिरता था जहा तक जा सकती थी
ढूंढा था तुम्हे कई जगह
सखियों से तुमरे, पूछने में झींझक से थी
हिम्मत नही कर पाया,
अब मिले तुम
अब कहने में संकोच
कब तक रहे गा यह
संकोच.......
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