मां तुमने गुज़ार दी ज़िन्दगी सारी, निभाने को एक बेमेल शादी,
और मुझे भी कर दिया मजबूर, दोहराने, ज़िंदगी तुम्हारी।
क्योंकि तुम्हारी मां भी ब्याही गई थी, बिना मर्ज़ी खुशी-खुशी
प्यार, परवाह, सम्मान बिना, यह रीत सम्मानित, बेहद पुरानी।
लेकिन मैं अपनी बेटी को, आदर्शवाद में बांधूंगी नहीं,
प्यार को जाति से तौल कर, समाज की सोच मानूंगी नहीं।
मैं नहीं दूंगी उसे मर जाने, या मार दिये जाने की धमकी,
उसके अच्छे-बुरे, सही-गलत में, मैं उसे संभाल लूंगी।
मैं नहीं थोपूंगी अपनी लाडो पर अपनी हर पसंद,
उसकी जिंदगी, शादी, और आज़ादी, होगा उसका हक़।
मैं तब हार गयी थी, मगर अब जीत कर दिखाऊंगी,
वादा है मां! मैं मेरी बेटी ज़बरदस्ती नहीं ब्याहूंगी।
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