कलाइयों पे सजी राखी,
मिठाई से भरी थाली ही रक्षा बंधन का त्योहार नही होता साहब।
सुनी कलाई और राह तकती आँखे भी
रक्षा बंधन का त्योहार है।
- MOHAN-
तुम्हारे जानें के बाद ही ये जाना
की किसी झूठ को कभी ज्यादा नहीं जीना चाहिए,
वरना उस के साथ जीने की आदत हो जाती हैं।-
वो जब भी मिली।
वो जब भी मुझेसे मिली ,शिकायते लेकर मिली।
मैं जब भी उसे मिला, उसका कुसूरवार बना मिला।-
सिगरेट और एकतरफ़ा प्रेम दोनो एक जैसे है।
एक शौख से आदत बन जाती,
दूसरी मोहब्बत से याद।
सफ़र भी दिलचस्प है दोनों का
एक 4 लोगो से छुप कर शुरआत होती,
दूसरी 4 लोग क्या कहेंगे ये सोच कर ख़त्म।
दोनों के नुकसान भी बहुत है
एक वक्त के साथ तुम्हे राख में मिला देती,
दूसरी जीने की वजह लिए जाती।
मग़र अंत एक जैसा है दोनों का
एक को तुम छोड़ना चाहतें ,
दूसरी तुमसे भूली नही जाती।
#हो_सके_तो_छोर_देना।-
शब्दों को जोड़ कर वास्तविकता नहीं लिखी जा सकती
ये मात्र एक कल्पना है।-
जब किसी रिश्ते में हद और दायरे आ जाते है तो समझिए रिश्ता अपने आख़िरी दौर से गुज़र रहा है।
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आज डोर, चरखी,पतंग सब कुछ तो ख़रीद लाये थे,
मगर
न जाने वो दोस्त,
वो पेच लड़ाने वाले दूसरे मुहल्ले के लड़के,
वो पतंग फसने पर झिक झिक करता पड़ोसी,
वो छत पे खड़ी तुम।
कोई भी तो नहीं था।
आज ड़ोर चरखी,पतंग सब कुछ तो ख़रीद लाये थे,
मगर
वो वर्धमान का रील,
फ्यूज पड़ी बल्ब,
घर से चोरी की चलनी और लोरही,
मिलाने को चावल,
वो मांझे की सूरी
कुछ भी तो नही था।
डोर, चरखी,पतंग सब कुछ तो खरीद लाये थे
मगर
कन्नी का गांठ,
पूंछ की अखबार,
साटने को लेई,
वो जाड़े की धूप,
कुछ भी तो नही था।
डोर, चरखी,पतंग सब कुछ तो खरीद लाये थे
मगर वो बचपन ही तो नही था।-
इन शहरों पे तोहमत न लगाइये साहब
ये शहर नहीं बदलते ,
बदल तो बस हम जाते है।
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ये तो तुम्हारे आने के इंतेज़ार में ,
जाना मैंने की घंटे में कितने दिन होते है।-