यहां कामयाबी पैसों से पता चलती है,
शायद इसीलिए लोगों के दिल और भरोसे
बड़ी आसानी से टूट जाया करते हैं।-
जिस पल...
तेरा खयाल ना आए,
ऐसा कोई पल नहीं।
जरूरत मेरी तुम हो,
तुम्हारा ये जिस्म नहीं।-
सोचा कैसे तुझ पर भरोसा करूं,
तेरे आसरे हो जाऊंगी।
खुद से बनी हूं मैं,
तेरे लिए न खुद को मिटाऊंगी।
प्यार था इसलिए प्यार दिखाऊंगी,
प्यार नहीं है तू मेरा,
जो तेरी तस्वीर सजाऊंगी।
कर भले तू हदें पार,
.......
इस बार ना गिड़गिड़ाउंगी।
उतार देना बेशक
किसी गरीब का सम्मान तू,
दुर्गा का रूप हूं मैं,
अगले जनम तेरा विध्वध कैसे आऊंगी।
घुट-घुट मरेगा, इतना नीचे गीराऊंगी,
इस बार न गिड़गिड़ाउंगी।
सम्मान मैं भी पाऊंगी...
सम्मान मैं भी पाऊंगी....।।-
नादान थी जो गिड़गिड़ाती रही,
तेरे क़दमों तले खुदको दबाती रही।
इस बार करलें तू लाख हट,
कहता है गुरूर मेरा, तू पीछे मत हट।
तू गिराना मुझे, बिन तेरे सहारे के उठूंगी,
करलें तू कोसिस, अब तेरे रोके से ना रुकूंगी।
माना मैं कमजोर थी अपने मन से,
निकली तूने अपनी पूरी भड़ास मेरे तन पे।
अब हूं "अटल" मैं अपने मन से,
और "प्रवल" अब इस तन से।
मेरी चीख सुनी है तूने,
इस बार दहाड़ कर दिखाऊंगी।
तू देख अब आँख उठाकर,
तेरी बोटियां खींच लाऊंगी।
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इस बार ना गिड़गिड़ाउंगी...
इस बार ना गिड़गिड़ाउंगी....।।-
हल्का दर्द हो, या हो फिर बुखार
जब होता हूं मैं घर से दूर, हॉस्टल में
उस वक़्त मां-बाप का किरदार
मेरे यार निभाते हैं।
-Mohan paliya
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एक अरसे बाद किसीने मुझे समझा,
जरूरत है मुझे प्यार की
मेरे दिल की इस बात को भी पढ लिया।
बिना मेरे बोले इतना सब कर दिया,
वैसे तो कोई खाश रिश्ता नहीं हमारा
पर तुमने मेरे दिल पर बड़ी जल्दी काबू कर लिया।-
अक्ल का कच्चा हूं,
इंसानों को समझने में बच्चा हूं।
मैं जैसा हूं खुदके लिए अच्छा हूं,
क्योंकि रिश्तों में, मैं सच्चा हुं।
Mohan paliya-
सुन! तू रो रहा है,
तू इतना कमजोर कब से हो गया।
तेरी आंखों में नमी है,
तू कमजोर दिल वाला, मर्द केसे हो गया।
तू बेटा है इस घर का,
जिम्मेदारियों का बोझ तुझे ही संभालना है।
टूटते रिश्ते को तुझे ही बचाना है,
हाल अपने दिल का किसी और को नहीं बताना है।
बहन है वो तेरी,
अपने खिलौने तुझे उसके साथ बांटने हैं।
उम्र से है तू अभी कच्चा,
पर तुझे खुदको कमजोर नहीं दिखाना है।
किसी से बिछड़ने का दर्द,
तुझे भी होता होगा,
एहसासों के बोझ से तुझे तेरा 300 ग्राम का दिल,
पत्थर सा भारी लगता होगा।-
मेरे दिए हुए फूलों को उसने, किताबों में संभाल रखा है।
यूं तो मुरझा गए हैं वो फूल पर,
किताब के पन्नो ने उनकी खुस्बू को बेकरार रखा है।-
छिपा कर रावण अपने अंदर,
सबको किरदार, श्री राम का निभाना है।
सुरक्षित नहीं सीता आज भी इस जग में,
पर हमें बुराई का रावण हर साल जलाना है।
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