मालूम है, मेरे ओहदे में गुजर बसर कितना है।
दिल में अरमां, जेहन में जहर कितना है।।
अपने वजूद की खातिर लड़ रहे है आज हम,
देख लिया हुकुमरानो की कलम में असर कितना है।
जिनकी खातिर हुनर अपना शिखर किया,
हमारा हक लिखने में उन्हें डर कितना है।।
कुछ हरकते, कुछ के चेहरे आ गए सामने, मोहन,
जान लिया, हमसाया कोई हमसफर कितना है।।-
कोई शहर अपने बुलाकर, न मिले तो न मिले।
मिलकर भी, नजरे मिलाकर न मिले तो न मिले।।
अपने जैसा बनाकर, फिर ढूंढ रहा है मेरे जैसा,
फकत कोई उसे मेरे जैसा न मिले तो न मिले।।
मैं डूबने से बच भी जाता, गर मिल जाता तो,
सहारा तिनके का, मोहन न मिले तो न मिले।।-
जागकर रातभर, इंतजार किया बहुत।
मैने, तेरी तस्वीर से प्यार किया बहुत।।
ये तकिया, ये चादर की सलवटे ग्वाह है,
अरे,तेरे ख्यालों ने बेकरार किया बहुत।।
मेरी हसरत क्या है,ये जानती हो तुम,
फिर भी मेरी बात से इंकार किया बहुत।।
अबके पूरी होगी तुम्हारी वो तमन्नाएं "मोहन"
दिल में दबा कर खुद को बेजार किया बहुत।।-
मुझे इल्म है,बात करने में देर हो गई।
मैं "तुम" थी, तो "आप" कैसे हो गई।।
मेरी सांसों में, मेरे एहसासों में बसते हो,
जाने तुम्हे क्यूं लगता है, मैं दूर हो गई।।
मैं सोचती रहती हूं, अब भी तुम्हारे लिए,
क्या करूं, वक्त के आगे मजबूर हो गई।।
ये माना के इंतजार किया है, मेरा तुमने,
यकीन करो, मेरी कोशिशे बेजार हो गई।।
ये अधूरी सा किस्सा, ये अधूरी सी गजल,
"मोहन" बिना मेरी ज़िंदगी अधूरी हो गई।।-
यार खुदा ने भी क्या कमाल लिखा है।
तेरे पास जवाब, मेरे हिस्से में सवाल लिखा है।।
सवाल तू जानता है, जवाब मुझे मालूम,
फिर शब्दो का, क्यूं जंजाल लिखा है।।
सो जाता, तो मुलाकात हो जाती ख्वाब में,
जागती रात में शे' र नहीं, ख्याल लिखा है।।
उसका हर अल्फाज हुकुम है, मेरी खातिर,
कौन, बे हया कह रहा था, जलाल लिखा है।।
दबा कर बैठे हो, के कोई जान न ले राज ये,
हथेली पर हिना से जो "मोहन लाल" लिखा है-
तेरे माथे का श्रृंगार बनू, या तेरे पैरो की झंकार।
उंगलियों को टटोले या कलाई देखे बारबार।।
मंजूर होगा मुझे ईश्क में चेहरे पर तेरे सजना,
तेरे कदमों का साथ दूं या हाथो में रहूं यार।।-
तुझे तोहफे में दू भी तो क्या दूं।
तुझसे नायाब मेरी जिंदगी में कुछ भी तो नहीं।।
Happy Valentines Day-
हमसाया, वो हमरूह मेरा।
उसके सिवा है भी क्या मेरा।।
आंखे मेरी, मगर दीद उसका,
ख्वाब में भी दिखता है यार मेरा।।
छू कर खुद को हो जाता है, हाए
महसूस मुझमें, जान ए बहार मेरा
बरसता बारिश, बहता दरिया सा,
भीगता सावन, वो बसंत बहार मेरा।।
कहता है कभी लिखाकर, मोहन
अपनी नज्मों में, ये प्यार मेरा।।
क्या सोचूँ और लिखूं भी तो क्या,
रहता है हर मोजू में, खुमार तेरा।।-
एक अल्फाज अजीज कितना हो जाता है,
जब सुनना सिर्फ उसी की जुबां से हो।।-
बसंत को बहार, दिन को जैसे रात चाहिए।
वैसे ही सजना मुझको भी तेरा साथ चाहिए।।
तेरी चाहत का सबब, मेरे ईश्क से ज्यादा है,
मुझे तो तेरी चाहत, बस तेरी चाहत चाहिए।।
जमाने की कसमकस, घेरे रहती है, मगर
मुझे तेरा आलम, सिर्फ तेरी बात चाहिए।।
वो दानाशाई सामने बैठा रहे उम्र भर मेरे,
आंखो में दीदार, हाथ में उसका हाथ चाहिए-