Mohammad Arif   (WordsOfArif)
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Joined 6 June 2018


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Joined 6 June 2018
2 SEP AT 9:33

प्यार इश्क मोहब्बत किरदार ऐसा है
जिसे ये ना मिले एकदम बेकार ऐसा है

मालूम होता अगर वो रुठ जाते है
हम जिंदगी भर करते इंतजार ऐसा है

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27 JUL AT 23:11

मुझे तेरा साथ चाहिए उम्र भर के लिए
तु मुझे जाने क्यूं मिली पल भर के लिए

हर चीज भुला दिया मैंने तेरी खातिर
तु मुझे याद आती रही हर पल के लिए

जान भी दे देता मैं तेरी खातिर वरना
रात सपनों में आई इक पल के लिए

मुस्कुराना याद अब भी आता है तेरा
जाने क्यूं दूर गयी तू हर पल के लिए

यादों में बसा रक्खा हूं इस तरह आरिफ
तू जैसे मिली हुई है मुझे उम्र भर के लिए

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13 JUL AT 11:28

जिसने हालात पी लिये हो

वो फिर जहर से नही डरता

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19 JUN AT 20:44

इश्क़ में रुठना भी जरूरी होता है
बिछड़ कर चलना भी जरूरी होता है

ना जाने कौन मिल जाए रास्ते में
घर से निकलना भी जरूरी होता है

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14 MAR AT 23:27

अजीब रंग है अपनी मुहब्बत का
जो लगाने से भी चढ़ता नहीं

पता नहीं क्या बात है उसकी
नाम मिटाने से भी मिटता नहीं

जो कभी हमारे दयार में रहें
वो हटाने से भी हटता नहीं

क्या मसला है समझ आता नहीं
यार समझाने से भी समझता नहीं

मुश्किलें बढ़ गई है अब उसकी
आरिफ रुलाने से भी रोता नहीं

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21 NOV 2024 AT 11:45

चारों तरफ शोर अपना वाला चोर है
अमीरों को देता है गरीबों को लुटता है

ना पेट्रोल और डीजल का दाम बढ़ा
आम लोगों के लिए तेल का दाम बढ़ गया

खोजती है निगाहें उस आदमी को आज भी
जिसने कहा था जब चाहो चौराहे पर बुला लेना

कितनी बेशर्मी से झूठ बोलते है आज भी
मुलाकात हो जाए तो सच पता चल जाए

अभी ना जाने क्या क्या देखने को मिलेंगे
हिन्दू मुस्लिम के अलावा देखने को और क्या मिलेंगे

डर हमेशा बना रहता है दिल में वतन को लेकर
आरिफ ना जाने क्यूं जीना मुश्किल अब लगता है

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14 JUN 2024 AT 17:19

इस कदर उनसे मोहब्बत हो गई
फिर से वो अपनी जिंदगी बन गई

बहुत रास्ते थे चलने के लिए मगर
एक रास्ते पर चलने से जिदंगी बन गई

मलाल था बहुत वो अपने नहीं होगें
चाहत थी इस कदर की जिंदगी बन गई

घर से निकला था मंजिल के लिए
उसे देखा वो अपनी जिंदगी बन गई

हर बार मैं ही गलत नहीं था आरिफ
उनका भी हाथ था जो जिंदगी बन गई

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24 MAY 2024 AT 7:44

हाथ से हाथ मिलाईये और हालात को बदलिये
हाथ ही आप हालात बदल सकता है
हाथ से हाथ बढ़ाए मिलकर साथ चले
वक्त की यही पुकार है मिलकर साथ चले

इस सड़ी हुई मानसिक बिमारी से बाहर निकलिये
बदलने का वक्त है अपने हालात बदलिये
फिर मौका नहीं मिलेगा मिलकर साथ चले
वक्त की यही पुकार है मिलकर साथ चले

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11 MAY 2024 AT 11:04

हालात फिर से बदलते नज़र आ रहें हैं
हमें वो पहले की तरह बीमार नज़र आ रहें हैं

इक वक्त था की सब कुछ उनके पास था
आजकल वो यहाँ वहाँ फकीर नज़र आ रहें हैं

नज़रें नहीं मिलाते किसी से अब पहले की तरह
जहाँ देखों वो बस झूठ बोलते नज़र आ रहें हैं

इतना गुमान है तो काम पर वोट मागों साहेब
लोगों को गलत बातें बताते नज़र आ रहें हैं

अब दिल भर गया है उनकी झूठी बातें सुनकर
आरिफ अपने लोगों को गलत नज़र आ रहें हैं

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25 FEB 2024 AT 19:55

कभी मेराज, कभी शब-ए-बारात, तो कभी शब-ए-क़द्र,

कितना मेहरबान है हमारा रब , बख़्शिश के हज़ारों वसीले देता है..
🤲

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