अजीब रंग है अपनी मुहब्बत का
जो लगाने से भी चढ़ता नहीं
पता नहीं क्या बात है उसकी
नाम मिटाने से भी मिटता नहीं
जो कभी हमारे दयार में रहें
वो हटाने से भी हटता नहीं
क्या मसला है समझ आता नहीं
यार समझाने से भी समझता नहीं
मुश्किलें बढ़ गई है अब उसकी
आरिफ रुलाने से भी रोता नहीं-
तेरे बात करने का लहज़ा कुछ बदला बदला सा हैं
बता ... read more
चारों तरफ शोर अपना वाला चोर है
अमीरों को देता है गरीबों को लुटता है
ना पेट्रोल और डीजल का दाम बढ़ा
आम लोगों के लिए तेल का दाम बढ़ गया
खोजती है निगाहें उस आदमी को आज भी
जिसने कहा था जब चाहो चौराहे पर बुला लेना
कितनी बेशर्मी से झूठ बोलते है आज भी
मुलाकात हो जाए तो सच पता चल जाए
अभी ना जाने क्या क्या देखने को मिलेंगे
हिन्दू मुस्लिम के अलावा देखने को और क्या मिलेंगे
डर हमेशा बना रहता है दिल में वतन को लेकर
आरिफ ना जाने क्यूं जीना मुश्किल अब लगता है-
इस कदर उनसे मोहब्बत हो गई
फिर से वो अपनी जिंदगी बन गई
बहुत रास्ते थे चलने के लिए मगर
एक रास्ते पर चलने से जिदंगी बन गई
मलाल था बहुत वो अपने नहीं होगें
चाहत थी इस कदर की जिंदगी बन गई
घर से निकला था मंजिल के लिए
उसे देखा वो अपनी जिंदगी बन गई
हर बार मैं ही गलत नहीं था आरिफ
उनका भी हाथ था जो जिंदगी बन गई-
हाथ से हाथ मिलाईये और हालात को बदलिये
हाथ ही आप हालात बदल सकता है
हाथ से हाथ बढ़ाए मिलकर साथ चले
वक्त की यही पुकार है मिलकर साथ चले
इस सड़ी हुई मानसिक बिमारी से बाहर निकलिये
बदलने का वक्त है अपने हालात बदलिये
फिर मौका नहीं मिलेगा मिलकर साथ चले
वक्त की यही पुकार है मिलकर साथ चले
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हालात फिर से बदलते नज़र आ रहें हैं
हमें वो पहले की तरह बीमार नज़र आ रहें हैं
इक वक्त था की सब कुछ उनके पास था
आजकल वो यहाँ वहाँ फकीर नज़र आ रहें हैं
नज़रें नहीं मिलाते किसी से अब पहले की तरह
जहाँ देखों वो बस झूठ बोलते नज़र आ रहें हैं
इतना गुमान है तो काम पर वोट मागों साहेब
लोगों को गलत बातें बताते नज़र आ रहें हैं
अब दिल भर गया है उनकी झूठी बातें सुनकर
आरिफ अपने लोगों को गलत नज़र आ रहें हैं-
कभी मेराज, कभी शब-ए-बारात, तो कभी शब-ए-क़द्र,
कितना मेहरबान है हमारा रब , बख़्शिश के हज़ारों वसीले देता है..
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ख्वाबों की ताबीर लिख रहा हूँ
अपने बिगड़े हुए मुकद्दर लिख रहा हूँ
दुशवारियों का सबब बहुत है मगर
मैं तुझे ख्यालें जेरोजजर लिख रहा हूँ
हो सके तो याद हमें भी करना तुम
अपने ख्वाबों में तुझे यार लिख रहा हूँ
दुश्वारिया घेर लिया है मुझे इस कदर
तुझे मैं अपना पुराना प्यार लिख रहा हूँ
तू चाहे तो मिल सकता है मुझसे आरिफ़
क्योंकि मैं तुझे अपना हमसफ़र लिख रहा हू
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नफ़रत का बाज़ार जो तुमने सजवाया है
फिर कैसा हालत मुल्क का तुमने बनवाया है
कितना खुबसूरत लगता है देश अपना
देखों लोगों के बीच दीवार तुमने चलवाया है
हालत तुमने कैसी कर दी है देश की देखों जरा
भरी क्लास में बच्चे को बच्चे से तुमने पिटवाया है
उस गरीब बाप के बच्चे को कितना डराया
बाप से क्या सोच के समझौता तुमने करवाया है
हालत अपने देश की देख के अब डर लगता है
आरिफ कितना कुछ गड़बड़ तुमने करवाया है-
हमें तो मुहब्बत की एक लौ जलानी है
ताकि नफरत जलकर खाक हो सके
सियासत ने आपस में सबको लड़ा रखा है
हम चाहते हैं की मुहब्बत आम हो सके-
तेरा ऐसे रुठ जाना मुझे अच्छा नहीं लगता है
हर बात पर तुझे मनाना मुझे अच्छा नहीं लगता है
कहने को तो बहुत कुछ है हम दोनों में मगर
हर वक़्त देखों जताना मुझे अच्छा नहीं लगता है-