मनमित सिंह   (शब्द से सुकून ..✍️)
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Joined 27 February 2019


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गिरता है गुलमोहर ख्वाबों में
रात भर

ऐसे ख्वाबों से बाहर निकलना
ज़रूरी है क्या....?

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वो चूम कर मुझे,
मेरे मन मे भरे-
इतिहास-समाज-राजनीति के विष
निकाल देती है।

वो चूम कर
होंठ मेरे
मुझे व्यक्ति से कवि
बना देती है...

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सुनो... तुम कभी
उन पुरानी ईंटों पर चलते हुए रुके हो?
जब पैरों के नीचे सूखी मिट्टी दबती है
और कहीं दूर कोई परिंदा उड़ता है,
उस समय कोई तुम्हें पुकारता नहीं,
फिर भी ऐसा लगता है जैसे कोई
तुम्हें देख रहा हो,
फिर तुम चलते हो, लेकिन
तुम्हारा अस्तित्व वहीं ठहरा रह जाता है…

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कुछ रोशनी धूप की होती है,
कुछ भीतर जलते दीयों की.....
पेड़ों की शाखाओं से छनकर जो
उजाला आया,
शायद वो मेरी ही तपिश का सबूत था !

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शहर में
सड़क किनारे
एक पेड़ के नीचे बैठा

एक बुजुर्ग...

उसे देखने से लगता था
जैसे शहर के कोलाहल में वह
पेड़ का एकांत जी रहा हैं... !

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तुम्हारा मुझसे कुछ देर का मिलना
'मेरी किसी मन्नत का पूरा होना जैसे लगेगा...

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सुनो ...
थक जाती हो ना!
सारा दिन घर का काम करते-करते!
"आओ ~ रख लो मेरे कंधे पर सिर
भींच लो आंखें 'देर तक बैठी रहो
और मैं फेरता रहूं हांथ सर पर तुम्हारे...
और तुम सो जाओ...🌻

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मैं कुंभ की कार्मिक भूमि सा,
तुम गंगा की अविरल धार प्रिये...

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जैसे इस भीगे हुए सर्द दिन में
शहर के परिंदों को अंधेरे का इंतज़ार हो ...

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सड़क किनारे खेलती हुई
एक प्यारी सी राजकुमारी ...😘

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