मनीषा शर्मा   (मनीषा :) ✍️)
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Joined 1 April 2022


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हे विश्वनाथ आदि अनंत स्वरूपा, सारी सृष्टि तुम्हारी है।
आजीवन नतमस्तक रहे हम, ये सौभाग्य हमारी हो।

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अरसों से बीमार पड़ा वो आदमी ,
जो कभी मुस्कुरा ना सका, आज लगता है
उसकी तबियत सुधर गई।
शुक्र है उस गुलज़ार का जिससे उसकी मुसीबतें टल गई।

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स्वदेश की शान है हिंदी।
भारत माता की आन है हिंदी।
हृदय की भावों को जोड़ने वाली,
सुनहरी अटूट धागा है हिंदी।

हर जीवन की पहली भाषा है हिंदी।
हमसब की आशा है हिंदी।

सांसों से जो लिपटी है,
वो सुंदर परिभाषा है हिंदी।
हिंदी हैं हम और हमारी हिंदी।
हमसब की आत्मा है हिंदी।

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नन्हे पौधों में भी जान होती हैं।
इनकी भी अलग पहचान होती है।
हर एक कोमल नए पत्तों में,
आसमां छूने की अरमान होती है।

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गागर अक्सर छलका करती, सागर नहीं छलकते देखा।
नकली कांच चमकता अक्सर, हीरे सदा झलकते देखा।
जिनका हृदय प्रेम से सुना, उस घाट से शमशान भला है।
ओछी तबियत के मानव से, कब कब किसको प्यार मिला है।

शूल और फूलों में, केवल अंतर इतना ही होता है।
कांटे सदा चुभन ही देते, लेकिन फूल महकते देखा।
गागर अक्सर छलका करती, सागर नही छलकते देखा।
बहुत मिले है मंचों पर चढ़, थोथे गाल बजाने वाले।
बहुत मिले है देश सुधारक, रामराज्य चिल्लाने वाले।

बूंद नहीं पानी की जिनमें, वे घन बहुत गरजते अक्सर।
जिनके घट में शीतलता हो, बादल वही बरसते देखा।
गागर अक्सर छलका करती, सागर नहीं छलकते देखा।

प्यास नहीं सागर की बुझती, साथी सरिता के पानी से।
नौका पार नहीं होती है, तूफानों में नादानी से।
जिवन की नौका खेने को, साहस की पतवार चाहिए।
अपने पर विश्वास न जिनको, मांझी वही बहकते देखा।
गागर अक्सर छलका करती, सागर नहीं छलकते देखा।

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हे श्री कृष्ण, गिरधर गोपाल कुंज बिहारी, मधुर मुस्कान, नयन छवि प्यारी।
कभी - न - कभी तो सुनेंगे ही मन की पुकार,यशोदानंद लाल कृष्ण मुरारी।

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ख़ुदा करे, कोई ऐसी तरकीब मिल जाए।
बिन मांगे, सबकी तशवीश छीन जाए।

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अमृत - सी निर्मल, सावन- सी शीतल है।
सोचो तो सागर सी हैं,
समझो तो सुलझी पहेली है।
सच में सबसे अच्छी ,
और सबसे सुंदर मेरी सहेली है।

हां थोड़ी नादान है,
पर बातों में नानी है।
समझने वाला समझते रह जायेगा,
बहुत लंबी कहानी है।

जन्मदिन मुबारक हो,
तुम्हारी हर मनोकामनाएं पूरी हो जाए।
तूम हमेशा ही खुश रहो ,
और सारी मुश्किलें आसान बन जाए।

रिश्तों के नए - पुराने बंधनो में,
तुझको अपनों का प्यार मिले।
गुनगुनाती रहे तू हर रोज,
तुझे खुशियों का संसार मिले।

सबसे प्रिय और हर्षों से भरा ,
जीवन का हर त्योहार रहे।
ईश्वर की कृपा से तुमको ,
सफलताओं का मकाम मिले।

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ख़ुदा का फैसला
ख़ुदा के किसी फ़ैसले पर,कभी ना तुम मलाल करना।
जब भी शक्तिहीन हो जाओ,बस मन में विश्वास रखना।
हर प्राणों की चेतना करना, परमात्मा का ही काम है।
जिसने हमको शरण दिया,उनका आजीवन आभार है।

जन्मों - जन्मों से तड़प रहा था, मानुष जन्म पाने को।
आख़िर जिंदगी मिल गई तो, प्रसन्न किया जमाने को।
अंगारों पर चलते चलते , दीपक - सा जल ही जाते है।
कहते है सब तुच्छ है, ख़ुदा जमीं पर मिल नहीं पाते है।

अभिवादन कर पाता तो,साथ-साथ मैं चल सकता था।
राहत की पगडंडियों पर, अपनेपन को भर सकता था।
तीनों लोकों को देख रहा है,सचर-अचर जो बेच रहा है।
गर जाते-जाते पाप किया तो, हर जन्मों में झेल रहा है।

पूजा तो पत्थर ही था ,पर सच में दया की शक्ति दिखी।
ईश्वर-प्रेम की भक्ति में विलीन,आत्मा को संतुष्टि मिली।
कैसे आत्मा त्याग सकते हो,जो निश्चित ही ख़ुदा का है।
उसके फ़ैसले अविचल है एवं शेष सत्कर्तव्य तुम्हारा है।

हम निर्गुण अज्ञानियों के सर पर,बस उसी का साया है।
अमीत सुख-दुःख की नगरी तो,उसका ही महामाया है।
जीवन का अंत ही विराम है, जो समय कभी न देती है।
जब जिसपर प्रसन्न हो जाए, उनको अपना कर लेती है।

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इश्क़ का रिश्ता
अपनों के रिश्ते जैसा ही, होता है एक अनोखा रिश्ता।
जिसमें रहती चाहत सबकी, व सबका अपना किस्सा।

खूबसूरती का मिसाल है, एक प्यारी - सी मुस्कान है।
अपनी आत्मा की उमंगों का, एक अलग ही अंदाज है।

एक अथाह प्रेम का राग है , दिल से दिल के रिश्तों की।
जहां रिश्ते कच्चे पर जाते है , सिवाय सच्चे रिश्तों की।

नजरों की चाहत में, सिद्दत - सा बस जाता है कहीं।
दिल के रिश्तों के बंधन को, कोई कभी तोड़ पाता नहीं।

सूरज की पलकों पर, शीतल-सी छाव सा बस जाता है।
मुकम्मल सरहद पार करे तो, इश्क़ नजर आ जाता है।

गर रिश्ते टूटे तो बातों का,कोई मतलब ना रह जाता है।
लाख कोशिशों में भी, ख्याल मन में उभर ही आता है।

हर मुश्किलें घट जाती है,जब साथ निभाता है मनमीत।
सुलझे रिश्तों के बंधन में ,हर दिल गुनगुनाता है संगीत।

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