मनीष जैन 'मौजी'  
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A dreamer,thinker and writer who loves to paint the canvas of Life with Words.
Joined 11 August 2019


A dreamer,thinker and writer who loves to paint the canvas of Life with Words.
Joined 11 August 2019

सोचा था वक़्त सुलझा देगा गिरह सारी
के धुँआँ हो जाएगी ज़माने की ज़िरह सारी
कोई समझे न चाहे पर उम्मीद थी तुमसे
के जान लोगे मेरी ख़ामोशी की वजह सारी

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थी चाह कभी कि निज जीवन को पावन निधिवन सा सजाऊँ मैं
महकती पुष्प-लत्ता बनसमस्त नैसर्गिकता से लिपट जाऊँ मैं
रूप,रंग,गंध और सीमाओं का भेद जहाँ पर न पँहुचा हो
स्वप्न-सरीखी ऐसी धरा पे,हो भाव-विभोर सर झुकाऊँ मैं

प्रेम अगर केवल तन का तो फिर वो कालजयी होगा कैसे
केवल काया के पोषण से रथ शास्वतत्ता का विजयी होगा कैसे
भोग योग के मध्य तनी जीवन रस्सी का एक नट बनके
मानवता से ईश्वरता तक की यात्रा का सूत्रधार बन जाऊँ मैं

मन के पोषण को तन है या तन के पोषण को है मन
विरह अगर तप नहीं तो चिन्मय आलिंगन को क्यों जलता है मन
जन्म-मरण के काल-च्रक जीवन पाटों के मध्य पीसते है पर
जिस धुरी पर घूम रहा सब, उस स्थिर बिंदु पे कैसे ध्यान लगाऊँ मैं

इस विश्व कर्म रंगस्थल में पात्र अपना खेल रहा हूँ मैं
कर्ता और कारक के बीच सब क्रियाओं को झेल रहा हूँ मैं
असीमित अपरिमित अक्षय वैभव कोष का स्वामी हूँ लेकिन
सदियों से सुषुप्त पड़े चेतन को अवचेतन से कैसे जगाऊँ मैं

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धुंध के बादलों के दरमियाँ जब मैंने आस-पास देखा
एक सुफेद नर्म फाहा-ए-सुकूँ पास पास देखा
वो कोई रूह कोई फरिश्ता नही था बल्कि
जिसे महसूस किया मैं ही था जो नज़रे-ख़ास देखा

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दोष केवल मेरा ही नही, मेरे संस्कार का भी था
अज्ञान से उपजे मेरे दावानल अहँकार का भी था

प्रारब्ध ने दिया कोमल हिय पर ये जगत तो ठहरा कठोर
मेरा मैं बनने का दायित्व, इस संसार का भी था

कोरी आशाओं के सहारे काली रात सा अंधेरा नही छंटता
विफलता को नही श्रेय केवल, रेखाओं के विकार का भी था

आहत नाद ही अकेला एक कारण नहीं मेरे एकाकीपन का
दूजा स्वभाव मेरा खोखली परंपराओं के प्रतिकार का भी था

रोष जितना भी, क्रोध कितना भी रहा हो जीवन से फिर भी
भाव सम्मुख भाग्य के प्रतिफल, हमेशा मेरा स्वीकार का भी था

नही ऐसा की समर्पण कर दिया है मैंने चुनौतियों के समक्ष
द्वंद तो,जो मेरा है उसे पाने के मेरे अधिकार का भी था

मैं भाव-शून्य कठोर हृदय कृतघ्न नही, फिर भी हूँ अस्वीकृत
हे प्रथम गुरु, दोष तो दीक्षित को दिए संस्कार का भी था

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हम ले तुंद क़दम छोड़ आये है महफ़िल-ए-इश्क़
के तिज़ारत-ए-वफ़ा से बड़ा दामन-ए-तर क्या होगा

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I'm just another traveller in Time,
Be it a rainly day or shining Sunshine

It doesn't matter how remarkable it was,
but you live it to the fullest, while it lasts

Moments are countless
but Memories are less,
say your prayers,
whether you a believer or naysayers

You've got only one life,
hold it gently not too tight,
In end all that matter is Love, it shines the brightest bright

I may not be around someday,
But l shall be looking over you, day after day, Everyday!

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कुछ सोचकर के ही वो संग ख़ुशियों के ग़म देता है
चाहे तो दे सकता है दर्द बे-पनाह पर कम देता है
वो जिनकी रग़ों में सीम-ओ-ज़र नही खूं बहता हो उन्हें
देता है दौलत कम पर दिल रहमत भरा नम देता है

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ज़िंदगी देने वाले ने हमें, जीने का सब सामां दे दिया
नीचे पैरों के दे दी ज़मीं ऊपर सर आसमाँ दे दिया

क़ाबलियत ये मेरी तो न थी, देख कैसे रुतबे से जीते है हम
बावजूद मेरी कमज़रफियत भरके झोली जहां दे दिया

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बेशक़ किताबों में छिपे है ज़िंदगी के सब फ़लसफ़े मगर
क्यों हर शक़्स जीने को यहाँ माँगता है ख़ाली सफ़े मगर
यूँ तो हर चीज़ मुक़र्रर है ज़माने में पर दिल का क्या करें
के मानता ही नहीं जब तक न पा जाये ज़ख्म गहरे मगर

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