मन का मुसाफ़िर   (Sumit Verma)
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Joined 27 October 2019


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आया है कितना शुभ दिन आज,
मां पधारी है हमारे द्वार,
हमारे सभी कष्ट हरने को,
आई है सिंह पर सवार आज,
हमारी गलतियों को माफ कर,
क्षमा कर रही आज मां,
मांग रही हमसे वचन एक,
द्वेष भावना को छोड़,
अपना जीवन सुधार में ध्यान दे,
कर अपने कर्मों को नेक,
मां के सामने माथा टेक ,
हमारी मनोकामना को वो पूर्ण करेंगी,
माता रानी हम सब पर कृपा जरूर करेंगी...

Happy Navratri....

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जो चल रहा है अंदर,
उसे बाहर दिखाएं कैसे?
क्यों बैठे है खामोश,
ये बात बताएं कैसे?
कोई समझेगा ही नहीं बात को,
तो उसे बात बताएं कैसे?
यूं अकेले कर रहे संघर्ष,
तो अकेलेपन से घबराएं कैसे?
जो चल रहा है अंदर,
उसे बाहर दिखाएं कैसे?

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चार दीवारी में कैद फूल,
दे रहे ताजगी का एहसास,
क्यों छोड़े वो मुस्कुराना,
सुख-दुःख ही जब जीवन का मिजाज...

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लिफाफे में कैद उस पन्ने को, भला कौन जान पाया है,
क्या लिखा है उसमें, कोई पहचान न पाया है,
पर खुलते ही लिफाफा, सारा राज खुल जाता है,
क्या लिखा है उस पन्ने में, सबको ज्ञात हो उठता है,
वैसे ही है हमारा ये जीवन, जिसमें कल का पता किसी को नहीं है,
पर जब आता है कल, तो आज में सब दिख जाता है,
कल में छुपा राज, आज में खुल जाता है,
लिफाफे में कैद ये ज़िन्दगी, सबको समझ न आती है,
कल में कैद सब बात, आखिर राज ही तो रह जाती है....

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प्रकृति क्या है? यह हमें दिखा रही,
खिलवाड़ की शुरुआत हमने की
अब प्रकृति खिलवाड़ हमसे करे जा रही...

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शायद रुका ही नहीं वो पल,
और चल पड़ी मेरी घर की दीवार घड़ी,
मैं रुक सा गया उस पल में,
और बस टिक टिक की आवाज आ पड़ी,

मैं समझ ही रहा था कि क्या हुआ?
उतने में घड़ी ही बोल पड़ी,
ये वक्त अभी नहीं है तुम्हारा,
इसलिए मैं चल पड़ी,

आयेगा कभी तुम्हारा वक्त,
तो मैं भी उस पल को रुक जाऊंगी,
बस एक वक्त ऐसा आएगा,
की तुम रुकोगे और मैं चल जाऊंगी...

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बांसुरी की वो मधुर ध्वनि कानों पर जो पड़ी,
नैन से अश्रु निकले, राधा की गूंज सुनाई पड़ी..

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हिन्दी हमारी पहचान है,
हमारे देश की शान है,
कहते है हम हमारी मातृभाषा,
ऐसे सुंदर भाषा से ही हमारा नाम है,
हिन्दी हमारी पहचान है,

देवनागरी में यह लिखी जाती,
52 वर्णों से इसकी पहचान है,
हर ध्वनि बनाती है शब्द को सुंदर,
व्याकरण इसे बनाती आसान है,
हिन्दी हमारी पहचान है,

तोड़ने वालों ने तोड़ना चाहा इसे,
पर अनेकता में एकता इसकी पहचान है,
अंग्रेजों के साथ लड़ाई में
इसने अहम भूमिका निभाई है,
हिन्दी हमारी पहचान है....

हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

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छूट गया कुछ अधूरा सा
पर जीवन अब भी बाकी है,
हार के पास पहुंच कर
जीत का स्वाद चखना अभी बाकी है,
देखा नहीं है जो पल,
उस पल को देखना अभी बाकी है,
क्यों उदास है ये मन,
खुशी की मिठास देखना अभी बाकी है,
छूट गया कुछ अधूरा सा
पर जीवन अब भी बाकी है....

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आती हैं जब परेशानी,
मन व्याकुल हो उठता है,
न जाने कहां से आता है तूफान,
जीवन में उथल पुथल हो उठता है,
कोई नहीं समझता परिस्थिति को,
ये सवाल मन में भी उठता है,
हो जाते है हम खुद से नाराज,
खुद से बात करने को मन न करता है,
पर ऐसा तो सबके साथ होता है,
तो कैसे कोई इसमें खुश रह लेता है,
शायद वह जानता है एक सत्य,
की मृत्युलोक है परेशानी की घर,
इस भाव में वह खुद को खुश रखता है,
आखिर खुश रहने में क्या लगता है???

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