दफ़न रिश्तों की कई गहरीं कब्रें
मेरे दिल के किसी अनजान कोने में
जिसके बिना बेवजूद थे हम,
एक पल भी ना लगा उन्हें खोने में
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कस के गले लगा लेता
गर जानता आख़िरी मुलाकात है
कुछ समय और बिता लेता
गर जानता यह आखिरी बात है
तेरी बाहों के घेरे में ढूंढ लेता मैं उम्र भर का सुकून
गर जानता इस के बाद खत्म कायनात है।-
कुछ बच सकता था हमारे तुम्हारे दरमियां
गर कर देते जो मन में था बेबाक बयां
कितनी दूर निकल गए हम देखते ही देखते
जब से अलग अलग सफ़र को है चुना-
आज ऐसा हुआ कि मोह पाश त्याग के
कड़ियां तोड़ के कुछ छोड़ने का मन हुआ
फैसले का अलगाव, जबरदस्ती के जुड़ाव से
कहीं बेहतर है ।।
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और उसने अपने उस नासूर बन चुके जख्म को चूमा
आसमान की और देखा और एक आह भरी
सब कुछ बंद आंखों में घूम रहा था
कैसे उसने गलत फैसलों से अपना वो सब कुछ खो दिया
जिसके बिना जीना उसके बस की बात नहीं थी ।
और उस से भी मुश्किल है ..
उसी शख्स को उदास देखना, जिसको उसकी खुशी के लिए जाने दिया था ..
उफ.. सजाए मौत कहां गले में डाली रस्सियों तक सीमित है।
मनीष कुमार-
तो मेरे लाख
धकेलने पे भी
नहीं जाती
मुझे लड़ती, झगड़ा करती,
पर पीछा नहीं छोड़ती
क्योंकि तुम्हे पता था
तुम्हारे बाद मेरे पास
जीने को कुछ बाकी नहीं रहेगा।-
बहुत से आंसू
बहुत सी चुभने वाली बातें
और बहुत से ताने
छुपाए बैठा है एक शख्स
इस खामोशी के पीछे ।।
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जब तुम्हे दिख रहा है
कि कोई अपना नहीं है
और तुम्हे निकल जाना चाहिए
खुद की ही खोज में
किसी की परवाह किए बग़ैर
फिर चाहे तुम्हें कितना भी सफ़र करना पड़े-
शब्दों की जद्दोजहद
और यह लिखने की क़ुव्वत
चाक दिल के साथ जीना
और अकेलेपन से मोहब्बत….
किसी शायर को कभी आज़मा के देख लेना
दिल्लगी नहीं सच्चा दिल लगा के देख लेना
तुम्हारे हर ज़ख़्म की मरहम बन जाएगा वो
ग़र यक़ीं हो तो एक बार हाथ बढ़ा के देख लेना
मनीष 💔-
थोड़ा अज़ीब नहीं हो रहा ज़िंदगी तेरे साथ?
वक़्त और हालात से तेरी कभी बनती नहीं
और नाराज़गियाँ तेरा पीछा नहीं छोड़ती …
यह रिश्ते तुझपे नज़र रखते नहीं थकते
और मुस्कुराहट आजकल नज़रें मिलाती नहीं …
गिले शिकवे जब से तेरे आस पास रहने लगे हैं
क़िस्मत दरवाज़े बंद करके रूठ चुकी लगती है..
थोड़ा अज़ीब नहीं हो रहा ज़िंदगी तेरे साथ?-