स्त्री पुरुष के सुख-दुख की साथी होती है
जब किसी भी पुरुष के जीवन में निराशा आती है और उसे कोई रास्ता नहीं दिखता, तब उसे सबसे ज्यादा स्त्री की जरूरत होती है..तब वह स्त्री के आराम के लिए तरसता है..चाहे वह मां हो, प्रेमिका हो या पत्नी..
लेकिन अगर वह निराशा या अवसाद उसके जीवन में किसी स्त्री के कारण आया हो, तो उसके मन की स्थिति का अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल है..उस समय हम उसकी परेशानी को कभी नहीं समझ पाएंगे..उसे जो महसूस होता है, वह सिर्फ वह स्त्री होती है. जो उसे छोड़ कर चली गई है, वही समझ सकती है.
समझें तो शतरंज के खेल में भी ऐसा ही होता है कि जब राजा दुश्मनों से घिरा हो, तो उसे सिर्फ रानी ही बचा सकती है.
और यही हाल स्त्री का भी है...जब भी वह परेशानी में होती है या किसी तरह की मानसिक स्थिति या उलझन में होती है, तब वह पुरुष के कंधे के लिए तरसती है..चाहे वह पति हो या प्रेमी..✨
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