तूने इबादत में शर्त रख दी,
तो मैने शर्त को इबादत बना लिया...
आइने में टूटा अक्स क्या देखा मैने,
मैं शीशे के टुकड़े जोड़ने लगा...
(MSA)-
तबियत इतनी दुरुस्त कर ली हमने,
अब ज़हर का भी असर नहीं होता...
हम वो हैं जो इश्क करके जी गए,
हमारे नसीब में तो कफ़न भी नहीं होता...
(MSA)-
24 की हर टुकड़े से,
जोड़ेंगे 25 का आकार...
24 में मिली तन्हाइयों के नीभ पर,
गढ़ेंगे 25 में अपनी खुदी का मीनार...
24 ने गुल खिलाए हैं,
हम 25 में गुलिस्तान खिलाएंगे...
24 में जो अंजाम मुकम्मल न कर पाए,
उसी से आग़ाज़ करेंगे 25 के सफर का...
(MSA)-
चलो उसी चौराहे पे वापस चले,
जहां मिले थे हम दो अजनबी...
फिर से साथ चलने की गुस्ताखी ना करे,
एक दूसरे पे तोहमत की बौछार ना करे...
तुम्हे तुम्हारी खानाबदोश सहूलियत मुबारक,
मुझे मेरी मुकम्मल शिकस्त मुबारक...
(MSA)-
याद हैं मुझे अब भी,
वो साकी का घरौंदा...
तेरी एक पुकार पे वह दौड़ा चला जाना मेरा,
कभी छोड़ के मयस्सर अधूरा,
तो कभी कारोबार आधा...
आज मयस्सर पैमाने में तो पूरा हैं,
अधूरा तो मैं रहे गया...
पुकार तेरी अब भी बरकरार हैं,
अलबत्ता नाम किसी और के...
(MSA)-
उनके कत्ल करने की अदा तो देखिए,
मेरे लाश के पहलू में अपना खंजर भूल गए...
और मेरे मोहब्बत करने की वफ़ा तो देखिए,
जलते जलते उन्हीं के आंगन को रौशन कर गए...
(Copied from a friend & inspired by Nazeer Bakri)-
मुझे चांद होने का वहम था,
अमावस में खो गया...
तू तो खानाबदोश हैं,
सितारे लाखों तेरे दामन में...
(MSA)-
एहम और एहमियत,
कभी एक सी नहीं होती...
एहम, इंसान अपने वजूद से बनता हैं,
एहमियत, दूसरों के बर्ताव से...
एहम तय करेगी ज़िन्दगी कैसी बीती,
एहमियत तय करेगी जनाज़े की भीड़...
(MSA)-
क्यूं करते हो इतनी मेहनत
कत्ल छुपाने को?
वो खंजर मेरा ही था,
वो ज़ख्म मेरे ही हैं...
वो लाश भी मेरी हैं,
और गुनेहगार भी मैं...
(MSA)-
ज़िम्मेदारी और इबादत में मच गई जंग,
तो हमने इबादत से तौबा कर लिया...
पुराने इश्क और नए जुनून में लगी होड,
तुमने जुनून का साथ निभा लिया...
(MSA)-