Mitali Sarangi   (Mitali Sarangi)
100 Followers · 84 Following

Joined 16 January 2019


Joined 16 January 2019
10 MAR 2022 AT 16:17

वो तेरी मासूम अदा
वो तेरा अंदाज़ सबसे जुदा,
छुआ था जब तूने अपनी नज़रों से मुझे
लगा जैसे मिलगया मुझको मेरे खुदा...
कभी बरसता बादल बन गया
कभी भीगता मौसम,
कभी मोहब्बत का बारिश बन गया
और भिगो गया मेरा दामन...
आज जो चंद बूंदे तुझसे लिपटकर
महका रही है मेरे हुस्न और शबाब को,
लगता है पल पल बहका रही हैं
वो मेरे सोते जागते हर ख्वाब को...

-


11 FEB 2022 AT 23:45

दिख रहा है एक टूटता सितारा गिरता हुआ
फ़लक से मेहबूब के लिए,
अब तो रोशन करना छोड़ दी है "लीना"
फिर भी उसे महताब ही समझो !!

-


23 JAN 2021 AT 23:33

बंद दरवाजे में न जाने कैसे हवस दाखिल हो जाता है,
चंद पाओं की आहट रात की साये में शामिल हो जाता है !!

कैसी तालीम मिली है जो तू इतना ज़ाहिल हो जाता है?
फूल हवा की चोट से नहीं तेरी ज़ख्मों से ग़ाफ़िल हो जाता है !!

इस ज़ालिम दुनिया में आकर किससे बेखबर दिल हो जाता है ?
नंगे पाओं में विश्वास का सीढ़ी चढ़कर दिल में दाखिल हो जाता है !!

कांप उठता है रूह जब इंसानियत हैवानियत में तब्दील हो जाता है,
नन्ही कली बदन से जिंदा होकर रूह मुर्दों में शामिल हो जाता है !!

-


31 OCT 2021 AT 15:47

पढ़ चुकी हूँ औक़ात मेरी,तेरी आँखों में
अब न कोई ख्वाहिश रहा,
पत्ते पत्ते में चल रहा है तूफ़ां क्यों कि
शजर का कोई आस न रहा...
अपना समझके वक़्त_बेवक्त आकर जो
तंग किया करते थे तुझे,
मिल गयी है निजात उस दर्द से अब
दिल में कोई प्यास न रहा ...

जिन्दगी भर हम-साया बनकर रहे
अब पल भर का साथ न रहा,
रिस्ते और रास्ते भी ख़त्म हो गए
मंजिल की कोई बात न रहा...
अब खुद ढूंढती फिर रही हूँ अपनी ही
धूप_छाओं को खुद की अक्स में,
पर जिन्दगी ही अजनबी बन छुप गया है
अब साया-ए-दीदार का जहमत न रहा ...

-


31 OCT 2021 AT 15:37

शिव जटा से निकल पड़ी
जाती हो तुम कहाँ सखी,
सृस्टि_प्रलय तुम्हारी हाथों में
स्वयं गंगा तुम पावन सखी ।।
कहीं अतुकांत सी बहती हो तुम
जीवन की हर तुक में भी तुम,
पाप_पुण्य विचारे हर एक कण
तुम जीवन का प्रारम्भ_इति सखी ।।
कभी उद्धत_सौम्य सा रूप धरो तुम
अमृत सा पावन जलधारा,
शीतल_उष्ण शलील धर्म की परिभाषा
अधर्म को मिले मुस्कान सखी ।।
युगों युगों से करती आयी तुम
इस अवनी_अम्बर को उधार,
नदी नही हमारी आस्था तू ध्रुवनंदा
भागीरथ को शत नमन सखी ।।

-


31 OCT 2021 AT 15:20

ख्वाब अकेला
रंग_बेरंग चला
देखूं मैं कहाँ ।।
रिस्ता ये कैसा
दिन_रात सजाया
खिलाया यहाँ ।।
दिल की दर्द
आज_कल मिला है
खड़ा है वहाँ ।।
ख्वाहिश बड़ी
आमने_सामने है
पुकारूँ कहाँ ।।
कतरे पंख
सच_झूठ क्या जाने
पंछी तू कहाँ ।।
रात की चाँद
यहां_वहां चला है
देखूँ मैं कहाँ ।।
एक था ख्वाब
जलता_बुझता था
ढुंदूँ मैं कहाँ ।।

-


27 OCT 2021 AT 19:02

ये जिन्दगी का सफर
इतना नही है आसान,
कुछ भी हो जाए बनाउंगी
तुझको अच्छा इंसान ।।
गम नही है मुझे हार जाऊँ या
जीत जाऊँ जिन्दगी की खेल में,
मन में है आशा,तुझको बिठाऊँ
परियों की रेल में ।।
अब तो सो जा मेरी नन्ही परी
जिन्दगी की बोझ मुझे उठाना है,
ख्वाब में मिलेंगे खिलोने सारे
संसार की माया को भूलना है ।।
हमेशा रहना तू साया में मेरे
तू है मेरी घर की शान,
एक अनूठे आनंद में भर जाती
जब मिलती है मुझे माँ की सम्मान ।।

-


27 OCT 2021 AT 18:53

तराशती है औरों की किश्मत
बाज़ी लगाकर अपनों की भूख को,
वक़्त की हर लम्हा को कैद करके
कुंडी लगा दी अपनी सुख को ।।
महफूज़ करके रखा है झोली में मुझको
मैं सो रही हूँ आँचल की छाओं में,
भले दुनिया मुझे झिंझोड़ के रख दे
मैं सर रख दूँ उसकी पाओं में ।।
आँखों की दहलीज़ से आँशुओं को
निचोड़ के रख दूंगी माँ,
तू अद्वितीय है इस ब्रह्मांड में
तेरी तुलना और हे कहाँ ।।
करके खुद को पत्थर तू ओरो के लिए
ईंट की महल बना दिया,
पर तेरी कोख ही मेरी महल है
जहाँ सुकून से मुझे सुला दिया ।।

-


22 OCT 2021 AT 16:06

ए जिन्दगी संवारले खुद को मेरी आँखों से
आँख नहीं इसे आईना समझले,
आ तेरी जमाल की एक तस्वीर खींच दूँ
दिल की धड़कन बंद होने से पहले ।।
दिल पर हुकूमत अब रहा ही नहीं मेरी
धड़कनों से संजीदा करलो मिलने से पहले ।।
ये कैसी दुआ की हुस्न भी मेहरबाँ न हुआ
न कोई धोका मिली मग़फ़िरत होने से पहले ।।
एक मुलाकात ज़रूरी है ग़म और खुसी की खेल से,
कहीं हार न जाउँ जिन्दगी खत्म होने से पहले ।।

-


22 OCT 2021 AT 15:19

यारों कैसे जिक्र करूँ उसकी
कयामत बाहों का
वो जो सिमटते होंगे उनमें वो
तो मर जाते होंगे...
कितनी दिलकश हो तुम
कितना दिल-जू हूँ मैं,
क्या सितम है यारों हमे देखकर
ये दुनिया जल जाते होंगे...
अजब है कि हम उसकी कूचे में
अपना आशियाना बना डाला,
तेज़-बाज़ी का शौक़ एक तरफ़
आँखों से क़त्ल-ए-आम करते होंगे...
लगता है अब एक मुलाकात जरूरी है
उनसे ख्वाबों की अंजुमन में,
क्या पता मेरे बारे में हक़ीक़त में
आप क्या सोचते होंगे...
दिल में अब सोज़-ए-इंतज़ार नहीं
फिर भी दिल ढूंढ रहा है तुझे,
त्रिशा-काम हूँ रातों का अब हर
कोई उजाला बुझा देते होंगे...
तेरे नैन की मुस्कुराहट पे जो जीस्त
के रंज भूल जाते थे,
अब इक हसीं आँखों के इशारे पर
काफ़िले भी राह भूल जाते होंगे...

-


Fetching Mitali Sarangi Quotes