आसमान में चमकता अष्टमी का चंद्रमा अपना रूप और चमक ,
एक लाल सी चादर में छिपाए हुए था
और उधर छत पर अंग अपना तेज़ ,मीती के आँचल में समेटे हुए था
मीती उस चाँद को निहारती हुई ,एक हथेली को ज़मीन पर टेके ,
दूसरे हाथ से अपनी गोद में सर रख कर लेटे अंग का सर सहला रही थी ,
अंग आँख बंद कर धीमे धीमे कुछ गुनगुना रहा था ।
मीती- सुनो ना ...
आज ये चाँद लाल क्यूँ हैं ... बड़े ग़ुस्से में लग
रहा है ।😕
अंग- हम्म... ग़ुस्से में ही है 😌
मीती- हाए.... चाँद तो शीतल होता है ना फिर उसे
ग़ुस्सा किस बात का 🤔
मीती का आँचल अपने चेहरे से हटाते हुए अंग ने उसकी
बाँह पकड़ कर हल्का सा अपनी ओर खिंचा...
अंग- जिस चाँदनी का दीवाना चाँद ख़ुद है ,वो किसी
तारे का सर अपनी गोद में रख कर सहला रही हो
तो वो चाँद ग़ुस्सा ना करे तो क्या नाचे मेरी जान? 😉
मीती- हैं.... अच्छा.... धत्त...... 🤦🏻♀️बातों के धनी तुम ।
(दोनो की खिलखिलाहट से समा गूँज रहा था ,
और दूर वहाँ आसमान में चाँद ने खिसिया कर ख़ुद को बादलों में छिपा लिया )
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