चमकते चाँदनी में जब भी तेरी छम छम मैं सुनता हूँ,
तो पायल की खनक तेरी मेरे साँसो में बुनता हूँ,
नहीं मैं मानता दुनिया के पैमानें अब जन्नत के,
बहुत हूँ चाहता तुझकों मगर कहने से डरता हूँ।
कहीं तू रूठ जायें तों या तेरा मन किसी पर हो,
मैं फेंकूँ ज़ाल माया का अगर ये मेरे बस में हो,
शायद दे नहीं सकता तुझें ख़ुशियाँ वो महलों की,
मोहब्बत इतनी होगी कि तेरी हर शाम जन्नत हो॥
मैं यूँ तकता ही तुझे बैठूँ अगर जो मेरे बस में हो - २
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