🪔 “अब भी जल रही है एक दीपावली भीतर...”
कई बरस बीत गए,
पर मेरे भीतर अब भी एक अंधेरा है
जो तुम्हारे न लौटने से नहीं,
बल्कि तुम्हारे लौटने की आस से जगमगाता है.....
लोग कहते हैं
दीप जलाने से अंधकार मिट जाता है,
पर मैंने सीखा है, अगर दिया मिट्टी का हो तो
दिए की रोशनी भीतर का शून्य बढ़ा देती है....
हर वर्ष की तरह इस बार भी
मैं चौखट पर दिया रखूँगी
न तुम्हारे आने के लिए
बल्कि ये जताने के लिए कि
मैं अब भी “प्रकाश” पर विश्वास रखती हूँ,
भले ही जीवन छाँव में गुजर रहा हो
कहीं दूर तुम्हारी खिड़की पर
अगर एक दीया झिलमिलाए
तो समझ लेना,
वो मेरे दिल की आख़िरी लौ है,
जो अब भी तुम्हारे नाम पर टिमटिमा रही है...
सुनो.... तुम्हें मेरी तरफ़ से हैप्पी दिवाली ✨-
सुनो...वो लम्ह... read more
त्योहारों का सबसे बड़ा मज़ा ये है कि
घर लौटने के लिए
किसी भी बहाने की जरूरत नहीं पड़ती-
भीतर से खाली होना कोई अपराध नहीं,
वो तो बस संकेत है
कि कोई बहुत गहरा एहसास
अपना घर छोड़ गया है
और जहां कुछ भी नहीं है वो खालीपन भी
भरा हुआ होता है
"अभाव" से......-
मैंने बचाकर रखें हैं दो चार आंसू
क्यों की मुझे पता है
एक ना एक दिन
नदियों की गवाही पर सूख जाने हैं समंदर-
खुली रह जाती है खिड़कियां
बंद हो जाते हैं दरवाज़े....
क्षणों के सुखों की प्रतिक्षा में
सूख जाता है जीवन....-
उसे मैं घर कहा करती थी... हर ख़त में,
अब लिफ़ाफे में क़ैद है वो नादानियां मेरी-
कहते हैं,
हर रूह की एक अपनी महक होती है .…...
जो इत्र से नहीं,
किसी के बाहों में दुबककर
पैदा हुए इश्क़ से होती है....-
किसने सोचा था तुम्हारे मैसेज से उठनेवाले लड़के को दूधवाले की घंटी जगाएगी
चेहरे पर तुम्हारे हाथ के स्पर्श से अलग खिड़की से सन कर आती हुई धूप गर्माहट देगी....
सुबह की परवाह न किसी से मिलने की जल्दी नहीं होगी इतवार अब दफ़्तर की छुट्टी से पहचाना जाएगा...
चाय अब दो हिस्सों में नहीं बांटी जाएगी और पुरी चाय को खत्म करना बोझ लगने लगेगा..
वैसे सुबह नहीं बदली,
इतवार नहीं बदला,
न वो चाय बदली है
न वो कमरा बदला है
बस एक वक़्त जो बदल गया है किसे पता था एक शख़्श के जाने से इतवार के दिन भी
सुकून नहीं आएगा
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लोग कहते हैं ये दुनियां प्रेम के पीछे भागती है
और जो ठहरा है वो भी प्रेम के लिए ही ठहरा रहा...-