Mishty _Miss_tea   (Mishty's moment ©)
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Joined 30 September 2018


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3 HOURS AGO

इक गुलबदन वो और इक गुल गुलशन गुलफ़ाम
कमबख्त किस पर फ़िदा हो और किस पर फ़ना

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18 HOURS AGO

कितना सहज है तुम्हारे लिए
मेरा हाथ छोड़कर
किसी और का हाथ थाम लेना,
कितना सहज
बाहें फैलाएं उसे प्यार देना,
और उसी प्रेम में
कभी वो चूमते होंगे तुम्हारा सीना
क्या इतना सहज होता होगा तुम्हारे लिए
अपने सीने पर पहले से अंकित
मेरे दीर्घ चुम्बन की निशानी मिटाकर
उसे अपना सीना सौंपना,
हो शायद की पूरे ब्रह्मांड की सबसे बड़ी टीस हो
लेकिन जिसने आजतक तुम्हारे खातिर
टीका रखी थी नींव विश्वास की
क्या इतना सहज है ख़ुद के खातिर
किसी के सच्चे प्रेम के अस्तित्व को
इतनी ही सहजता से भुला देना,

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YESTERDAY AT 8:16

लेने ही पड़ते हैं तुम्हारे कुछ ख़याल
सुबह की चाय के साथ,
नाश्ते से मेरा पेट भरता है मन नहीं

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YESTERDAY AT 7:22

" दुबई "
जिस रेत को प्यास हुआ करती थी पानी की
देखो आज पानी आया तो मरने पे आ गया

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18 APR AT 22:23

शहर की जलती लाईटों की
चकाचौंध में पता ही नहीं चलता के
कब देखते ही देखते
शाम बूढ़ी हो चली है और
उसके चहेरे की सिलवटें आसमां के
नीचे इकट्ठा होकर
रात में तब्दील हो जाती है
वहां पहले से मौजुद चांद के
आयने में ख़ुद को निहारते हुए
चेहरे पर बादलों का गुच्छा मलते हुए
सुबह तक में
फ़िर से जवां होने के लिए...

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18 APR AT 16:51

यह वाकई दुःखद रहा.. लगभग मेरे 15 और तुम्हारे लिखे हुए 5 प्रेमपत्र के ऊपर तुम्हारा लिखा हुआ 1 शादी का कार्ड इतना भारी पड़ गया के तुम्हें मुझसे सदा के लिए चुराकर ले गया

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17 APR AT 9:09

अपनी उदासियों को पहना कर लफ्ज़ों का लिबास,
मैं अब संवारती हुं ख़ुद को मुस्कुराहट के नकाब से..

ख़ामोशी से प्यार करना उसकी मासूमियत के सदके
अब चुप्पी में जल रही हुं अपने अश्कों के तेज़ाब से..

खोलोगे तो महक मेरी किताबों से आयेगी इक दिन,
मेरे चाक_ए_जिगर महकेंगे बदले उनके गुलाब से..

पढ़ लेगा ज़माना हर्फ दर हर्फ मेरी चाहत का नशा,
इकतरफ़ा मोहब्बत सुकून होती है बदले शराब से..

पीछे काफ़िला ..दुआ में मौत... मैंने मांगा खुदा से,
जीने की जुस्तजु को हटा दिया है मैंने ख़्वाब से..

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16 APR AT 11:38

ये नदियां, ये परबत, ये फिजाएं
तेरी इजाज़त हो तो कभी आयेंगे
तेरा शहर बाकी है, गलियां बाकी है,
तेरे कूचे से मुझे गुज़र कर देखना है ...

तुमसे हर सरोकार बाक़ी है
हमारी तुमसे मुलाकात अभी बाकी है,
जिस उम्मीद से मोहब्बत है तुमसे
तुम्हें कभी बाहों में भर कर देखना है...

बे आबरू हो कर निकल रही है जान
जैसे लाइलाज बीमारी हो कोई,
हम आयेंगे ढूंढते हुए चारागार
तेरी बाहों में मुझे मर कर देखना है...

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16 APR AT 0:29

सफ़र में धूप
होगी किसे पता था...
हम चल दिए थे
इक गुलमोहर की आरज़ू पर

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14 APR AT 20:25

पीले रंग में रंगा है मन
गुलाबी रंग से नाराज़गी नहीं
कौन प्रेम से दूर रहें हम
कैसे कह दे दिवानगी नहीं

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