मैंने वक्त पे छोड़ दिए है
वक्त के सारे सितम,
शायद घाव लग जाए नये
या मिल जाए कोई मरहम-
मेरी आखरी सांस का,
मुझे पता नहीं होगा
शायद,
नहीं बोल पाऊंगी,
हो सकता है कि...
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परेशान था बहुत दिल जीस फासलों से
वो मिलने आया था... मैंने चाय बनाई थी,
कुछ इस तरह मोहब्ब्त हम दोनों ने निभाई थी,
सुरज रोज़ की तरह रोशन था वक्त पे,
इश्क़ में हमने थोड़ी सी धूप खिलाई थी,
कुछ इस तरह मोहब्ब्त हम दोनों ने निभाई थी,
कैसे कहे थी क्या असर ठंडी हवाओं की
उसने चुमा था मुझे और मेरी सर्दियां भगाई थी
कुछ इस तरह मोहब्ब्त हम दोनों ने निभाई थी,
मुद्दत से आशियां_ए_दिल खंडहर था मेरा
मैंने महबूब की इक वहां तस्वीर लगाई थी
कुछ इस तरह मोहब्ब्त हम दोनों ने निभाई थी,
इक दरियां जो पार ना हुआ था कभी
इकदुजे की आंखों से हमने ये दूरियां मिटाई थी,
कुछ इस तरह मोहब्ब्त हम दोनों ने निभाई थी,
सफ़र हसीं और ख़्वाब मुकम्मल हो गया
इश्क़ में ना जाने फ़िर भी नींद गवाई थी,
कुछ इस तरह मोहब्ब्त हम दोनों ने निभाई थी,-
उनके बग़ैर बेबसीयों का आलम ना पूछिए जनाब!!
दिल मरघट सा और हम ठहरे.... जीने के शौकीन!!-
लोग आते जाते बहुत है इस दिल के मकाँ में,
ये चौखट फ़िर भी उसकी ही राह... पूछती है,-
काश!! मैं बांट सकती अपने आधे ज़ख्म,
आज भी मेरे कातिल के पास मेरे जीने की दवा है-
उसका घर आना कोई काम ना आया सुखनवर,
वो नींद में मशरूफ और हम इक तरफा मोहब्ब्त में-