PAIN AGAIN ?
Bleeding from head,
Cuts on the vein,
Sitting on the bathroom floor,
I dozed off again.
They asked;
You slipped again ?
Sat over the bridge,
Tried to get infront of the train,
Jumped into the water,
Got wet again.
They asked;
Stop playing in the rain again ?
Thought it's getting too much,
I should end all the pain,
Blade touched the skin,
And bliss kissed me again,
I felt life slipping away,
Random Whispers calling my name,
But I can see a bright light approaching me again,
Wait.. that's not a train.
Carriage full of flowers adorned with my name
And there I could hear a divine voice again,
Hold tight my child, for i cannot see you in more pain.
Or would you want to go back and fight in the war till you die again ?-
Busy in shaking thoughts.
लिखना आता है या नहीं पता नहीं,
पर अल्फाजों... read more
आजादी - सबको नसीब नहीं होती ।
दुनिया हुआ कुछ यूं आबाद,
की बस्तियां खाली, और शहर भीड़ लग गए ।
की तुम्हारा फैलाया कचरा साफ करने वाला मैला
और दागी चरित्र नेता साफ हो गए ।
की हरा मैदान सुख गया बिन पानी
और सोसायटी के बगीचे में खुले नल से नदी बह गए।
की भूखा मर गया अनाज उगाने वाला,
और पार्टियों में आज खाना बर्बाद हो गया ।
की आज फ़िर भीड़ ने मार दिया दो बेकसूर को पोलिस के सामने,
और एक बार फिर सवाल उठाने पर पत्रकार पर हमला कर दिया गया ।
की आज मौत से बचाने आए डॉक्टरों पर कोई पत्थर मार गया ,
एक और बार आबाद भीड़ ; खाकी रंग पर लाल दाग लगा गया ।
200 साल लगे आजाद होने में,
नजाने आबाद होने में कितना वक़्त और लगेगा ,
के राम और रहीम तो सिधार गए स्वर्ग रास्ता दिखा कर,
नज़ाने पैसों से अंधे इंसान को मंजिल पाने में कितना वक़्त लगेगा ।-
मैयत : A Tale of Death for one and repentance for the other .
- जिन्होंने लाख गुज़ारिशों से किनारा कर मंझधार में डुबो दिया था ,
आज वो भी आ गए मैयत में शरीक होने ,
जिन्होंने कल तलक मंजूर नहीं था हमारा आवाज़ ऊंचा करना,
आज वो नज़रें झुका कर आए हैं मैयत में शरीक होने ,
जिन्होंने पलकें तक ना झपकाइं हमारे चीख़ों को सुन कर,
आज वो भी नम आंखों के आए हैं मैयत में शरीक
होने ।
( अक्सर किसी वस्तु को खोने के उपरांत हमें उसके उचित मूल्य का बोध होता है,
परन्तु क्या यह सत्य में केवल मूल्यबोध है या पश्चाताप का बोध जो हमें आन्तरिक रूप से ग्लानि के सागर में तल्लीन करता जाता है )
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Curse of a deceived Lady.
My life came crashing down one fine day,
Screeching cries casting the souls on fire,
My psyche was meandering to descry some cure,
Questioning relationships that were forsooth pure,
Thou contrived pathway for my veracious conscience to die,
Avowing while my flesh and bones decay under the sky,
Singing own coronach like a holy prayer,
Summoning the Archfiend to deal with the one who is a liar
I wish the same fate upon all lying souls,
May you have no one while you cry,
May your body decay like mine yet unlike me may you never die ,
But may you live long and watch yourself collapse in total despair.
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मोहब्बत है मुझसे तो तुम जताते क्यूं नहीं,
हाथ थाम कर हक तुम जताते क्यूं नहीं ?
देखो ज्यादा इंतजार करना पसंद नहीं मुझे,
इतनी देर मत करो आए हमनवा की
तब तुम्हारा जिक्र हो और हमें तुम्हारी हो फिक्र नहीं ।
_sushree
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अब नहीं भाता उसका ज़िक्र मुझे,
ना ही उसकी गलियों में जाना ,
कैसे भूल जाऊं,
उसकी फरेबी बातों पर मेरा यकीन करना,
अपना दिल तलक उसके क़दमों पर रख देना ,
और उसका एक दफा पीछे मुड़ कर भी ना देखना ।
हां अक्सर टूट जाती हूं,
जब भी तेरी गलियों से गुजरती हूं,
यूं तो लाख दफा कह दूं के अब इकारार नहीं तुझसे,
मगर हर इबादत में अब भी तेरा ही जिक्र करती हूं ।
_ Sushree
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WAQT KA MATLAB
Matlab nhi tere yaadon se koi,
Yaadon Mei Tere chehre se Matlab hei,
Mujhse Matlab nikalne Mei nikal gayi Zindagi Teri
Aur Tere matlabon Mei hi Maine apni Zindagi nikal di hei.
_ sushree.-
मिले हुए तुमसे अब एक अरसा था हो गया ,
यादें झिलमिल, तस्वीर तक भी धुंधला हो गया ,
जब यकीन होने लगा कि हमारा रिश्ता ही ख़तम हो गया,
बीच चौराहे मुलाक़ात सालों बाद हुई ,
तूने मूड कर पीछे देखा,
और
तुझसे मोहब्बत दोबारा हो गया ।
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मिले हुए तुमसे अब एक अरसा था हो गया ,
यादें झिलमिल, तस्वीर तक भी धुंधला हो गया ,
जब यकीन होने लगा कि हमारा रिश्ता ही ख़तम हो गया,
बीच चौराहे मुलाक़ात सालों बाद हुई ,
तूने मूड कर पीछे देखा,
और
तुझसे मोहब्बत दोबारा हो गया ।
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अज्ञात ब्याधी
कुछ यूं उलझी ज़िंदगी मानो रेशम की डोर हो कोई ,
संजोए रखा हुआ धीरज भी कहीं गुम हो गई,
अनजाने उलझनों में आगे बढ़ गई वक़्त की सुई ,
सिते रहे जो उम्र भर उलझे अज्ञात रेशों के पुल,
कितनी ऐसी बेखबर ज़िन्दगीयों को बहा कर व्याधि की बाढ ले गई ।
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