अब... लहज़ा बदल कर बात करती हो..
मुझमें... कुछ ..फर्क़ दिखा था क्या...!
बेवजह तो नहीं...मासूमियत भरा चेहरा रखती हो,
कहो.. मुझसे... कुछ काम है क्या...!-
ये रास्ते मैंने चुने थे....
अब मैं ही इनसे बिछड़ना चाहता हु,
मेरी उम्र भावनाओं का दौर है...
मैं इनसे निकलना चाहता हूं ।-
सवालों में सवाल पूछती है..
साथ दोगे न हर बार पूछती है!
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आंखों में उम्मीदों के आस रखती है..
ख्वाबों के पूरे होने की प्यास रखती है!
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मन ही मन न जाने कितने ख्वाब बुनती है..
उसका ज़िद्दी सा मन है मेरी कहाँ सुनती है!-
अब धुनों में वो बात नही होती...
उनमें जो तुम्हारी आवाज नहीं होती..!-
कभी-कभी लोग हमसे बिछड़ जाते हैं...
मानो जैसे पेड़ो से पत्ते गिर जाते हैं...
हौसला रख ऐ राही ज़िन्दगी के मोड़ पर,
राहगीर थोड़ा रुक कर फिर आगे बढ़ जाते हैं...!-
व्यस्त रास्तों में उलझी ज़िन्दगी है...
कभी हाँ तो कभी नहीं है,
उम्र का दायरा घट रहा है...
आज कहिं है तो कल कहिं है..!-
मुस्कुराती है बेख़बर होकर...
ज़िन्दगी जीना उसी से सीखा है,
खुद को हर रंग से वाक़िफ बताती है...
उसके इसी बचपने पर तो हमने मरना सीखा है।-
रास्ते वही होंगे...
हम बीतें लम्हों को यादों का जाल कहेंगे,
मैं वहाँ वापस जाऊँगा जब ....
वो रास्ते वो यादें मुझे गुजरा साल कहेंगे..!-
शब्दों के फेर में मेरी ज़िन्दगी सिमट रही है..
एक हां के इंतजार को मेरी उम्र घट रही है,
डर है.. हांथो से निकल न जाये.. वो सुनहरा कल,
मेरी ख्वाहिशें उन लम्हों को तरस रही है..!-
इजाज़त दूं तुम्हें तो_दिल तोड़ जाओगी..
हाँथ छोड़ू तुम्हारा_तो राहे मोड़ जाओगी,
तुम कहती रहो_मैं ख़ामोश सुन रहा हु तुम्हें,
न सुनु तो डर है_कहीं_तुम छोड़ जाओगी..!
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