पुरानी सी पुरानी
आशिकी देखी हैं हम ने
बाबू सोना , जानू
जीना मरना , कसमें वादे ,साथ साथ चलना
सब कुछ देखा हैं ..
बेवक्त की आशकी भी देखी हैं
महबूब का जाना , आना , मिलना
ढेर सारी बातें करना...
बिन बादल के मौसम में जैसे बारिश होना
फिर जरूरत और खुद की खुदगर्जी के कारण
उसी महबूब का तमाशा बनाना...
खुदा बचाए ऐसे ऐसे मुहब्बत से
करना ही है मुहब्बत तो खुद से करों,
खुद के विचारों को ऐसा बनाओ , खुदगर्जी
को दूर भगाओ कि तुम खुदा के नजरों में बस
जाओ, ये दुनिया का क्या हैं ये तो भगवान से भी दुखी हो जाते हैं...
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