करीब से देखा मुस्कुरातें उसे आज मैने कहीं
है कुछ जज्बात उसीके खातिर
वो जिससे वाकिफ भी नहीं
बिना पलकें झपकाएं देखती रही मेरी नजरें उसीको
रोका खुदको
पर जालिम दिल है की मानने को तैयार ही नहीं-
गिरते हैं संभलते भी मुसलसल हैं हम
बस तू साथ देती रह ए जिंदगी
तुझी से ही मुकम्मल हैं हम !-
उन हजारों नग्मों की क्या अहमियत होगी
जब कि बात सिर्फ उन दो लफ्जों की हो !!!-
हात ठेवूनी कटेवरी
विठुराया उभा दिसत आहे
डोळे मिटून घेतलेस का रे
बघ बाळ तुझा रडत आहे-
मंजिल नजदीक है फिर भी
काफिलों संग चलने का बहाना नहीं चाहता
अकेले चलने की चाह है मुर्शिद
ये दिल अब किसीका सहारा नहीं चाहता-
दफना दिए थे वो जज्बात
फिर से उन्हें जगा दिया तुमने
भूला दिए थे वो जख्म
फिर से उन्हें कुरेद दिया हमनें-
मनातलं आता माझ्या शब्दांत मी तुला बोलू काय ?
हृदय चोरलंस माझं त्याची शिक्षा म्हणून
जन्मभर नजरकैदेत मी तुला ठेऊ काय ..-
खूप दिवसानंतर तुला पाहताच
ओठांवरचे शब्द माझ्या थक्क झाले होते
हात तुझा हाती घेताच
ठोके हृदयाचे माझ्या चक्क वाढले होते
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यादों की बस्ती में
अब ना शिकवे ना कोई गीले है ..
लगता है शायद
फिर कुछ नए सपने खिले है ..-