गीली मिट्टी का ढेर था, आकार दिया है तुमने...
एक छोटे-से अंश को पहचान दिया है तुमने।
बोया मन में बीज, तब देखें सपने मैंने,
कलम नहीं उंगली थी तेरी, ज्ञान था जिसमें सबक थे गहरे...
हर शाबाशी, हर ऊंचाई.., जो मैंने अबतक "उंचक" के पायी,
उसके पीछे कोई और नहीं, "वो कंधे ही थे तेरे"...।
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