इतने हुस्न से नवाज़ा नहीं है हमें खुदा ने
चलो हम तारीफों के बगैर भी जी लेंगे
कुछ सितम फरहाज़ के अल्फाज़ पर होंगे
तो कुछ सितम चर्चा-ए-चांद पर।
खैर!
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जो कह नहीं सकती किसी से वो जज्बात लिखती हूं।
आज घर से निकली ही थी परफ्यूम मार कर
और रिक्शे वाले भैया ने तुम्हारे ही घर के रास्ते से हो कर मुझे मेरे दफ़्तर पहुंचाया
माशाल्लाह क्या रास्ता रहा क्या सफर रहा
काश तुम भी आ कर बैठ जाते
मैं दफ़्तर छोड़ तुम्हारे साथ कहीं पिकनिक मनाने चल देती
पागल मैं भी क्या क्या सोच बैठती हूं
तुम तो कहीं और किसी दूसरे शहर के वासी हो चुके
मैं तो आज भी यहीं इसी शहर की मुसाफ़िर हूं
लेकिन ये रास्ता आज भी मुझे वैसे ही खुबसूरत दिखता है
और दिल ही दिल में गुनगुनाने का मन करता है
तुमसे मिलने को दिल करता है रे बाबा
तुमसे मिलने को दिल करता है
तुम ही हो जिस पे दिल मरता है
यही सोच कर मेरी मंजिल आ गई
और आज में जा आंख खुली
रिक्शे वाले भैया को पैसे दिए 20 रुपए
और चल दिए उस सफर को छोड़।
बस इतनी सी थी आज 30 दिसंबर 2021 की कहानी।
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माफ़ करना तुम्हारा इकलौता इश्क़ बंट गया,
मैंने अब शेर,गज़ल, कविताओं से इश्क़ कर लिया।-
खैर कोई बात नहीं
सब ठीक है।
ये कहने में कोई हर्ज नहीं,
ज़िंदगी अब तुझसे कोई गिला कोई शिकवा नहीं।-
कभी मिलेंगे ज़िंदगी तुमसे कामयाब हो कर
अभी बराबरी करने का वक्त नहीं आया है।-
तुम कितने भी दूर रहो मुझसे
तुमने अपने एहसासों से हर वक्त छुआ है मुझे।-
आंखों को ग़म भी ठीक वहीं से मिले,
जहां आंखों ने आंखों को ख़्वाब दिखाए थे।-