आज घर से निकली ही थी परफ्यूम मार कर और रिक्शे वाले भैया ने तुम्हारे ही घर के रास्ते से हो कर मुझे मेरे दफ़्तर पहुंचाया माशाल्लाह क्या रास्ता रहा क्या सफर रहा काश तुम भी आ कर बैठ जाते मैं दफ़्तर छोड़ तुम्हारे साथ कहीं पिकनिक मनाने चल देती पागल मैं भी क्या क्या सोच बैठती हूं तुम तो कहीं और किसी दूसरे शहर के वासी हो चुके मैं तो आज भी यहीं इसी शहर की मुसाफ़िर हूं लेकिन ये रास्ता आज भी मुझे वैसे ही खुबसूरत दिखता है और दिल ही दिल में गुनगुनाने का मन करता है तुमसे मिलने को दिल करता है रे बाबा तुमसे मिलने को दिल करता है तुम ही हो जिस पे दिल मरता है यही सोच कर मेरी मंजिल आ गई और आज में जा आंख खुली रिक्शे वाले भैया को पैसे दिए 20 रुपए और चल दिए उस सफर को छोड़। बस इतनी सी थी आज 30 दिसंबर 2021 की कहानी।