कभी कभी ये सोचती हूं कि
तुमसे मिली ना होती, तो ज़िन्दगी कैसी होती ?
तुम्हारी नज़रों से नज़रें मिली ना होती, तो ज़िन्दगी कैसी होती?
तुमने अपनी उंगलियों को मेरी जुल्फों में उलझाया ना होता , तो ज़िन्दगी कैसी होती?
मेरी उलझी हुई ज़िन्दगी को सुलझाया ना होता, तो ज़िन्दगी कैसी होती?
कभी कभी ये सोचती हूं कि
तुमसे मिली ना होती, तो ज़िन्दगी कैसी होती?
ज़िन्दगी शायद बेहतरीन होती बिना अश्कों के रंगीन होती,
और यूं किसी की उलझनों में उलझना ना पड़ता,
और यूं किसी की खातिर तड़पना ना पड़ता
और यूं ही किसी की इंतज़ार में रातों को जागना ना पड़ता।।
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