उड़ाया मज़ाक समाज ने बदसूरत सी शक्ल का,
आत्मविश्वास तोड़कर तूने मेरा चूरा कर दिया है
थे गलत जब तुम तो क्यों खत्म करूँ मैं खुद को?
क्यों सुबह ने आकर कमरे में अंधेरा कर दिया है?
मगर देख नहीं हारी हूँ मैं अभी तक इस जंग में,
हिम्मत के रंग को मैंने थोड़ा सुनहरा कर दिया है
बामुश्किल सम्भाला है खुद को खो देने के बाद,
मिटाकर अंधकार जीवन में मैंने सवेरा कर दिया है
मैं पढूंगी, बढूंगी और तुझको सज़ा भी दिलवाऊंगी,
तेरे भविष्य पर ले मैंने शनि का बसेरा कर दिया है
रोये थे खून के आँसू मेरे माँ-बाप जाने कितने दिन,
ढांढस भी खुदा ने मुझको थोड़ा ठहराकर दिया है
सुना है कि दो बेटियों का पिता अब बन गया है तू,
अब यही डर खुदा ने ज़हन में तेरे दोहराकर दिया है
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