Milan Saxena   (मिलन सक्सेना)
577 Followers · 77 Following

read more
Joined 18 October 2016


read more
Joined 18 October 2016
24 JAN 2021 AT 14:55

राम-सिया संवाद: सिया का त्याग

◆ यह कविता सीता जी के पुनर्वनवास के पूर्व मध्यरात्रि में श्रीराम के साथ हुए संवाद पर आधारित है। इसे संवाद के प्रारूप में लिखा गया है। कविता की शुरुआत सीता जी के कथन से होती है व प्रत्युत्तर में श्री राम अपना कथन रखते हैं।

◆कविता का प्रथम अनुच्छेद सीता जी का कथन है और उसके उत्तर में दूसरा अनुच्छेद श्री राम का कथन है। कविता का भाव ग्रहण करने हेतु यह आवश्यक है कि पाठक कविता को क्रमशः इसी क्रम में पढ़ें।

(कविता अनुशीर्षक में पढ़ें)

-


9 JAN 2020 AT 23:15

उड़ाया मज़ाक समाज ने बदसूरत सी शक्ल का,
आत्मविश्वास तोड़कर तूने मेरा चूरा कर दिया है

थे गलत जब तुम तो क्यों खत्म करूँ मैं खुद को?
क्यों सुबह ने आकर कमरे में अंधेरा कर दिया है?

मगर देख नहीं हारी हूँ मैं अभी तक इस जंग में,
हिम्मत के रंग को मैंने थोड़ा सुनहरा कर दिया है

बामुश्किल सम्भाला है खुद को खो देने के बाद,
मिटाकर अंधकार जीवन में मैंने सवेरा कर दिया है

मैं पढूंगी, बढूंगी और तुझको सज़ा भी दिलवाऊंगी,
तेरे भविष्य पर ले मैंने शनि का बसेरा कर दिया है

रोये थे खून के आँसू मेरे माँ-बाप जाने कितने दिन,
ढांढस भी खुदा ने मुझको थोड़ा ठहराकर दिया है

सुना है कि दो बेटियों का पिता अब बन गया है तू,
अब यही डर खुदा ने ज़हन में तेरे दोहराकर दिया है

-


24 OCT 2019 AT 23:46

सीता

-


30 AUG 2019 AT 23:31

लिखना था बहुत पर शब्द खाली थे,
ग़म के जाम को लबों से पिया हमने

कोशिश की तमाम हर बात समझने की,
तन्हाई में हर वक्त को खुद जिया हमने

मुझ में कहीं हो पर नज़रों से दूर हो,
याद है देखी थी साथ वादियाँ हमने?

चलना दूभर था मगर हिम्मत साथ थी,
कुछ छोड़ी कुछ सुधारी खामियाँ हमने

बिखर जाने के बाद संभलना आया,
किस्मत को अपने हाथ में लिया हमने

हमसफ़र इस सफर का कोई ना था,
मिलन की वाणी को ज़िंदा किया हमने

-


4 APR 2019 AT 18:24

I borne a Similie
Carved out into a Metaphor
Voiced it to become an Alliteration
Draped beautifully with Personification
Studded it with the gems of Apostrophe
Surrounded it with Onomatopoeia
Raised it among a bushy Exaggeration
Taught it mighty Assonance
Emphasised the value of Euphemism
Gave it a squashing skill of Irony
Added to taste a pinch of Oxymoron
Made it self sufficient like Synecdoche
And finally named it as Figure of Speech

-


23 MAR 2019 AT 5:39

सुलझा के रखो एक तरफ फ़िर भी खुद-ब-खुद उलझ जाती है,
ये ज़िन्दगी भी ईयरफोन है क्या?

-


20 FEB 2019 AT 6:40

कभी टूटते थे सितारे आँचल में जिसके;
आज खोकर वह अपना चाँद, ज़मीं पर उजाला कर गई

-


14 FEB 2019 AT 6:24

मेरे इश्क़ के बसन्त का बस अन्त कर दिया तुमने

-


3 FEB 2019 AT 11:25

इन लबों पर रखे अंगारों को सिगरेट की तरह बुझा दो,
कि मेरे ख़्वाब नीँद के बदन से राख बनकर झड़ते हैं

-


2 FEB 2019 AT 2:42

है प्यार का ये महीना,
या है इश्क़ की ये फरेबरी?

-


Fetching Milan Saxena Quotes