आता है
ग़म की हज़ार सौगातें दे जाता है-
ना काहू से बैर
“मुझसे बुर... read more
सावधान...!
पहाड़ आ रहे हैं,
मैदानों की ओर।
चट्टानें खिसक रही हैं।
दरिया उफान पर हैं,
किनारे टूट रहे हैं।
बादल बरसना छोड़
अब फट रहे हैं सिर्फ़।
सूरज धधक रहा है
हर पहर एक सा
रक्त–वर्ण–लाल रंग।
हवा में लू की जगह
लौ–लपट ले रही है!
होनी अनहोनी का
भेद कठिन है
यह अंत है
एक आदि का
और प्रारंभ भी
एक आदि का।-
मुहब्बत बनाने वाले तुझे भी मुहब्बत हो जाए
तू भी मेरे हाल से गुजरे तुझे भी समझ आए-
बहुत बदल लिया ख़ुद को
अब और नहीं बदलना है हमें
अपनी ज़िदगी का सफ़र
अपने हिसाब से तय करना है हमें-
सोचता हूं क्या था क्यों था कहां था तेरे संसार में
अब क्या बताए क्या ही करना था जी कर बेकार में
बेमतलब ज़िंदगी से हमने रिश्ता ही ख़त्म कर लिया
ख़ुदा दो फूल चढ़ा आया ख़ुद ही अपनी मजार में
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अनायास ही कुछ भी लिख कर
कुछ भी बना दिया जाता है हमें
फिर किसी के कसम दिलाने पर
हर बार मिटा दिया जाता है हमें
हम अपनी अहमियत पता करते
पहले ही आईना दिखा दिया जाता है हमें-
इसकी उसकी हर नज़र में खटक जाता हूं
तो क्या करूं
कभी कभी ख़ुद को भी रास नहीं आता हूं
तो क्या करूं-