और पुराने ग़ुलाबों की महक
ज़िन्दगी से ज़ाती नहीं...
ये बार बार दिल को वहीं ले
आती हैं... ज़हां से कोई डगर
सुकून की तरफ़ ज़ाती नहीं..-
वक्त दे दीजिए वक्त पर अपनों को
सुना है वक्त फिर वक्त नहीं देता....
संभलने को....-
हो चुके हैं दुनियादारी से..
कि अब कोई रंग चढ़ता ही
नहीं... दिल की रंगदारी पे...-
तेरी फुर्कत में ज़ो सीखे वो
दुनियादारी के सब़क ऐसे
याद हुए...ज़ैसे भूलने वाले
बच्चे को मास्टर ज़ी के डर से
सारे पहाड़े याद हुए...-
तलब़ चाय की हो या तेरे साथ की...
पास तेरे ले ही आती है...इस बहाने से
ही सही जिंदगी मुस्कुरा ही ज़ाती है-
हम से ना पूछा यारों.. बहुत कुछ
खोया है... बहुतकुछ पाने के बाद...-
अफ़सोस है कि यूं ही ज़ाया हो गई
तसल्ली यह भी है कि आखिरकार
गुज़र तो गई.... ज़िन्दगी ....-
काले रंग का कमाल है या तेरे
ज़माल का हुस्न पे शायद पहरा
दिया है रब ने शबाब का-
वो पूछते हैं कैफ़ियत हमारी..
.कभी
खुशहाली में जिनकी हैसियत
ना थी सलाम फरमाने की.-
तुझ से मिल कर कामिल हुए
ना और कहीं शामिल हुए..
सारी दुनिया को छोड़ा और बस
एक तुझे हासिल हुए....
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