मीनाक्षी राजीव उपाध्याय  
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Joined 4 January 2019


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Joined 4 January 2019

और पुराने ग़ुलाबों की महक
ज़िन्दगी से ज़ाती नहीं...
‍ ये बार बार दिल को वहीं ले
आती हैं... ज़हां से कोई डगर
सुकून की तरफ़ ज़ाती नहीं..

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वक्त दे दीजिए वक्त पर अपनों को
सुना है वक्त फिर वक्त नहीं देता....
संभलने को....

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हो चुके हैं दुनियादारी से..
कि अब कोई रंग चढ़ता ही
नहीं... दिल की रंगदारी पे...

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तेरी फुर्कत में ज़ो सीखे वो
दुनियादारी के सब़क ऐसे
याद हुए...ज़ैसे भूलने वाले
बच्चे को मास्टर ज़ी के डर से
सारे पहाड़े याद हुए...

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तलब़ चाय की हो या तेरे साथ की...
पास तेरे ले ही आती है...इस बहाने से
ही सही जिंदगी मुस्कुरा ही ज़ाती है

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हम से ना पूछा यारों.. बहुत कुछ
खोया है... बहुतकुछ पाने के बाद...

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अफ़सोस है कि यूं ही ज़ाया हो गई
तसल्ली यह भी है कि आखिरकार
गुज़र तो गई.... ज़िन्दगी ....

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काले रंग का कमाल है या तेरे
ज़माल का हुस्न पे शायद पहरा
दिया है रब ने शबाब का

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वो पूछते हैं कैफ़ियत हमारी..
.कभी
खुशहाली में जिनकी हैसियत
ना थी सलाम फरमाने की.

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तुझ से मिल कर कामिल हुए
ना और कहीं शामिल हुए..
सारी दुनिया को छोड़ा और बस
एक तुझे हासिल हुए....

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