मीना मल्लवरपु   (मीना मल्लवरपु)
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Joined 18 July 2019


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Joined 18 July 2019

मंज़िल - यह क्या बला  है ?
सुना तो है ,वहां पहुंचते पहुंचते
सभी के पांव हो जाते हैं छलनी
ज़ख़्म रिसते हैं ,आंख में रह रह कर
नमी का होता अहसास  !
डबडबाई आंखें , सुबकती रातें,
आहों,नालों के बिना किसकी ज़िंदगी गुज़री है!
अब तक जिंदगी की दुधारी तलवार  से बचते बचाते ,
हंसते रोते,खेलते खिलखिलाते,गिरते उठते, संभलते
'मंज़िल' की खोज मे रमें हुए हैं हम!
क्या ढूंढ रहे हैं मालूम नहीं
सवाल जवाब  की कोई कड़ी हाथ नहीं आती
मुलाक़ात मंज़िल  से होगी कब और कैसे
डर भी , तड़प  भी ,ललक भी आस भी
मगर अठखेलियाँ भी तो थीं अपनी,
बेशुमार थे सपने!तब भी थी मंज़िल पर नज़र
आज भी है पर आयाम बदलते रहते हैं पल पल,
समझ से अपनी परे कि चाहते हैं क्या,
क्यों मन होता है इतना चंचल कभी ,
इतना भारी कभी-  हैरान , परेशान कभी!
कर सकूं नज़रंदाज  मैं हर डर को,
हिम्मतों को न होने दू पस्त
शायद मंज़िल  की परिभाषा
कुछ कुछ  समझ आ जाए
आज नहीं तो कल!

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कल  सुबह तक न जाने क्या क्या हो जाए-
क्या  जानें ज़िंदगी अपने अद्भुत पिटारे से
क्या- क्या निकाले , क्या-क्या पकड़ाए
सुन्दर,  लुभावने, तोहफ़े नायाब, प्यारे से
या मंज़र ऐसा कोई  , जो दिल दहला जाए

पल  भर में कर दे दूर  हमें ,अपने ही साए से
कल  सुबह  का  क्या भरोसा क्या ले आए
मुस्कुराहट  लबों पर या शिकन माथे पे
चेहरे पर मायूसी,आंखों के नीचे काले साए
ठाठ रहेगी कायम या कल होंगे हम मुरझाए से

अगले पल  को  अपना अज़ीज़ दोस्त सखा मान
जी  लें ,गरिमामय जीवन,किसने है देखा कल
इस पल में  हो माधुर्य , जीवन के प्रति हो सम्मान
दोस्ती निभाएं ख़ुद से औरों से,जीवन से पल पल
कल सुबह की चिंता रहने  दें , संजोते रहें अरमान!

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पंखों ने मेरे कहा मचल कर
  चल दुनिया देख आते हैं
     आसमान की ऊंचाई
सूरज की किरनें छू आते हैं!
     मैंने आंखों में बसाई
  तस्वीर जो, देख आते हैं
भर देते हैं उसमें रंग सभी सुंदर

ज़िंदगी कितने रंग संजो कर
    कर रही इंतज़ार हमारा
  क्यों अपना मन मसोस कर
  कर लें हम चुपचाप गवारा
बेड़ियां, हाथ आगे बढ़ा कर!
    क्यों भुला दें वह नज़ारा
नेमत जो हमारी, हक हमारा!

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इस गहरी गुफ़ा से गुज़रना है
ज़िंदगी नाम है इसका
हौसलों से नहीं मुकरना है
साथ मिलेगा किसका
जाने न कोई- बस तरना है
और तरना ध्येय जिसका
उसे नहीं आपदा से डरना है
जीत उसकी समर्पण जिसका

मन की आंखें राह दिखाएंगी
हो घुप्प,गहनअंधेरा कोई ग़म नहीं
समर्पण अपना रंग दिखाएगी
जहां हो आत्मविश्वास वहां तम नहीं
कदम कदम पर तुझे संभालेगी
वह शक्ति अदृश्य जिसका सम नहीं
आंधियां कभी न बुझाएंगी
हौसलों के दिए-
कर आखें नम नहीं।


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वसूल करेगी ज़िंदगी हर भले बुरे का हिसाब -हमें भाए न भाए
है उसकी नज़र पैनी, हर छोटी बड़ी बात खुली किताब
है भी क्या ऐसी कोई  बात जो उसकी समझ में न आए !
नज़र अन्दाज़  कर दे , कर दे मुआफ़ है यह बस एक ख़्वाब
गुज़ारिश बस इतनी कि घेर न लें ग़म के गहरे, काले ,गहन साए
मगर दे दे छोटे से एक सवाल का ऐ ज़िंदगी जवाब
क्यों देती नहीं मौके सुधरने के , चिंता यही खाए
मिल जाए शायद मुझे भी धुरंधर का ख़िताब
भला भुला देता हर कोई, बुरा भुला न पाए
है कोई निजात, राह कोई, नुस्खा कोई नायाब
जो भले बुरे दोनों को दे दे मौका, संभल तो पाए
है इंतज़ार ज़िंदगी, कभी न कभी मिलेगा तेरा जवाब!






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कितने इम्तेहानों से ग़ुज़रकर,ऐ ज़िंदगी
पहुंची हूं इस हसीन मुकाम पर
पल भर सांस लेने देना मुझे , ऐ ज़िंदगी
बैठ इस चट्टान पर,ज़रा मुड़ कर
गुज़रे पलों का जायज़ा तो ले लूं,ऐ ज़िंदगी
बचपन की मासूमियत को कर दूं नज़र
दुनिया भर की ख़ुशियां-रंगीनियां,ऐ ज़िंदगी
यौवन के ऊबड़-खाबड़ रास्ते,अनजाने डर
रिश्तों की गांठें -उलझाते सुलझाते,ऐ ज़िंदगी
हांफ रही हूं अब तक- कदमों ने कहा, 'ठहर'
मन मान गया- यह जानते हुए भी,ऐ ज़िंदगी
ज़िंदगी रुकती नहीं,थमती नहीं!आठों पहर
देती है पहरा हमारी हर सोच पर यह ज़िंदगी!
सफ़र की हर बारीकी पर उसकी कड़ी नज़र
फिर भी, कट ही गए वह दिन रात वह पहर
अड़चनों ने की बार किया हताश , ऐ ज़िंदगी
चुनौतियां मजबूरियां ढाती रहीं बार बार कहर
हिम्मत हौसलों का साथ मगर रहा ऐ ज़िंदगी-
मायूसियां छूमंतर हो जातीं होते ही सहर
ग़म और ख़ुशी,भय अभय,नेमत तेरी,ऐ ज़िंदगी
साथ उनके हौसले ,संकल्प,माधुर्य की लहर
आज सुकून का एहसास,रग रग में मेरी बंदगी
शुक्रगुज़ार हूं ज़िंदगी की - अब यह लहर
बहा कर ले जाए चाहे कहीं,ग़म नहीं ऐ ज़िंदगी
जानती हूं हम भटके इन्सान ,शामो सहर
गंवाते हैं वक़्त,ढूंढने,खोने और पाने में
मगर हर पल की थी दौलत बेशुमार,
समझ रही हूं जीवन का सार इस ताने बाने में!

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राह भूले हम मुसाफ़िर,ज़िंदगी राह दिखा दे
ज़मीन आसमां एक कर दिए हमने
मगर मिलती नहीं क्यों मंज़िल हमें बता दे
क्या रह गई कमी,घेर लिया तम ने
तूफ़ान ही तूफ़ान,अंधेरे क्यों नज़र हैं आते

दोष नज़र का मेरी या है फ़ितरत ही कुछ ऐसी
दिखते नहीं उजाले, रास न आतीं नेमतें
आंखों पर है बंधी पट्टी , हालत ही कुछ ऐसी
आस लगाए बैठी हूं बरसेंगी तेरी रहमतें
कभी न कभी मुझ पर,देंगी ठंडक मुझे बर्फ़ सी

रंगीनियां ज़िंदगी की बंट गई जैसे सभी में
मैं रह गई मुंह तकते ,हो गई रुआंसी
ग़ुम हुईं जब सारी ख़ुशियां ,जग गई तभी मैं
मेरे हिस्से में रह गई उदासी ही उदासी
बता तो दे ज़िंदगी , कहां पीछे रह गई मैं

ज़िंदगी मुस्कुराई मेरी कुंठा पर,मेरी नादानी पर
दोष नज़र का ही है, नज़रिए का ,यह जान
बनाए रख आस, बुलन्द रख तू जीवन भर
मंज़िल भी तक रही है राह तेरी ,सच मान
ग़मगीन न हो कट ही जाएगा यह सफ़र

ख़ूबसूरत इस पल से नाता तोड़ना नहीं
अपने पराए जब हो जाएं बस हमारे
पीर पराई मुस्कुराएगी क्यों नहीं
चमक उठेंगी नम आंखों में फिर से हमारे
आंसू भी मोती बन - बस कभी भूलना नहीं।











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दीप ने बस जलना जाना
आंधी-तूफान, जंगल बियाबान
करते रहें निष्ठुर प्रलय का आह्वान
अंधेरी रातों का ताना बाना
कर दे चाहे उसे निस्पृह निष्प्राण
घबराए न वह छोटी सी जान
दीप ने बस जलना जाना
जलना उसकी फ़ितरत,रोशनी से काम
सपना ज्वलंत,उत्तम ,उज्वल भविष्य का
ख़ुद से वादा निभाने का,कुछ कर दिखाने का
कर दिया सार्थक उसने अपना नाम
सूरज से पंगा क्या मगर उसे भी है गुमान
जलने में ही उसकी गरिमा उसकी शान
जलना उसकी फ़ितरत, रोशनी से काम
नापनी है अभी मीलों की दूरी
है बाक़ी जब तक स्पंदन , जब तक सांस
गरिमामय बनी रहे यह ज़िंदगी,हो इसमें वास
श्रद्धा, संकल्प और माधुर्य का
छोटा सा दिया और बाती कर देते अनायास
निःशब्द-कौन करे शब्द ढूंढने का प्यास
नापनी है अभी मीलों की दूरी!
दीप जले जलता ही रहे
प्रेरित हो, प्रेरित करता ही रहे
अंधेरे उजालों में फ़र्क न रहे
मुकाम ऐसा,जो सबसे कहे
लीन प्रकृति में हम सभी
शुक्रगुज़ार,संतुष्ट हम सदा रहें।





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दीप ने बस जलना जाना
आंधी-तूफान, जंगल बियाबान
करते रहें निष्ठुर प्रलय का ऐलान
अंधेरी रातों का ताना बाना
कर दे चाहे उसे निस्पृह निष्प्राण
घबराए न वह छोटी सी जान
दीप ने बस जलना जाना
जलना उसकी फ़ितरत,रोशनी से काम
सपना ज्वलंत,उत्तम ,उज्वल भविष्य का
ख़ुद से वादा निभाने का,कुछ कर दिखाने का
कर दिया सार्थक उसने अपना नाम
सूरज से पंगा क्या मगर उसे भी है गुमान
जलने में ही उसकी गरिमा उसकी शान
जलना उसकी फ़ितरत, रोशनी से काम
नापनी है अभी मीलों की दूरी
है बाक़ी जब तक स्पंदन , जब तक सांस
गरिमामय बनी रहे यह ज़िंदगी,हो इसमें वास
श्रद्धा, संकल्प और माधुर्य का
छोटा सा दिया और बाती कर देते अनायास
निःशब्द-कौन करे शब्द ढूंढने का प्रयास
नापनी है अभी मीलों की दूरी!
दीप जले ,जलता ही रहे
प्रेरित हो, प्रेरित करता ही रहे
अंधेरे उजालों में फ़र्क न रहे
मुकाम ऐसा,जो सबसे कहे
लीन प्रकृति में हम सभी
शुक्रगुज़ार,संतुष्ट सभी सदा रहें।





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कविता
मेरे
साथ



मीना मल्लवरपु






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