कितने इम्तेहानों से ग़ुज़रकर,ऐ ज़िंदगी
पहुंची हूं इस हसीन मुकाम पर
पल भर सांस लेने देना मुझे , ऐ ज़िंदगी
बैठ इस चट्टान पर,ज़रा मुड़ कर
गुज़रे पलों का जायज़ा तो ले लूं,ऐ ज़िंदगी
बचपन की मासूमियत को कर दूं नज़र
दुनिया भर की ख़ुशियां-रंगीनियां,ऐ ज़िंदगी
यौवन के ऊबड़-खाबड़ रास्ते,अनजाने डर
रिश्तों की गांठें -उलझाते सुलझाते,ऐ ज़िंदगी
हांफ रही हूं अब तक- कदमों ने कहा, 'ठहर'
मन मान गया- यह जानते हुए भी,ऐ ज़िंदगी
ज़िंदगी रुकती नहीं,थमती नहीं!आठों पहर
देती है पहरा हमारी हर सोच पर यह ज़िंदगी!
सफ़र की हर बारीकी पर उसकी कड़ी नज़र
फिर भी, कट ही गए वह दिन रात वह पहर
अड़चनों ने की बार किया हताश , ऐ ज़िंदगी
चुनौतियां मजबूरियां ढाती रहीं बार बार कहर
हिम्मत हौसलों का साथ मगर रहा ऐ ज़िंदगी-
मायूसियां छूमंतर हो जातीं होते ही सहर
ग़म और ख़ुशी,भय अभय,नेमत तेरी,ऐ ज़िंदगी
साथ उनके हौसले ,संकल्प,माधुर्य की लहर
आज सुकून का एहसास,रग रग में मेरी बंदगी
शुक्रगुज़ार हूं ज़िंदगी की - अब यह लहर
बहा कर ले जाए चाहे कहीं,ग़म नहीं ऐ ज़िंदगी
जानती हूं हम भटके इन्सान ,शामो सहर
गंवाते हैं वक़्त,ढूंढने,खोने और पाने में
मगर हर पल की थी दौलत बेशुमार,
समझ रही हूं जीवन का सार इस ताने बाने में!
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