(महकूम अली) محکوم علی   (महकूम)
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Joined 26 March 2019


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Joined 26 March 2019

कर्म करे तो लाख मिले,
ना करे तो ख़ाक मिले।

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हम जहाँ से चले थे वहीं आ गए हैं,
ना पूछना क्या खोया क्या पा गए हैं।

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जीवन की दौड़ में अंत तक दौड़ना है,
मौत को हर इंसान का घमंड तोड़ना है।

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सुनो, ये गुलाब नहीं मेरा प्यार है,
कह दो तुम भी मुझे स्वीकार है।

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काश कोई होती तो बताते उसको,
हाल-ए-दिल अपना सुनाते उसको।

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कब तक खड़ा रहूँ मैं तेरी राह में,
मैं देखूँ तुझे, कब गुज़रेगी तू इस चाह में।

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अब अकेला ही ढूँढकर लाऊँगा,
कहीं ना कहीं तो मिलेगा खोया हुआ सुकून।

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मोहब्बत से लबरेज़ ऐसी कोई दिलरुबा मिले,
जितना मैं चाहूँ उसको उतनी मुझे वफ़ा मिले।

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मुझसे लगकर आराम से ऐसे बैठ गई,
जैसे सुकून भरे फूलों पर वो लेट गई।

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वजह - बेवजह तुमसे हमारी
मुलाक़ाते होती रहेंगी,
मिलना है सदा के लिए
रोज ये ख़्वाहिशें होती रहेंगी।

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