(महकूम अली) محکوم علی   (महकूम)
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Joined 26 March 2019


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Joined 26 March 2019

आख़िरी मुलाक़ात होगी ये मैंने सोचा ना था,
वो ख़ुश था, इसीलिए मैंने उसको रोका ना था।

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मोहब्बत कर के देखी, किया ऐतबार हमने भी,
और मिला कुछ नहीं, खोया बेशुमार हमने भी।

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पढ़ लिखकर बड़ा हो जा,
अपने पैरों पे खड़ा हो जा।
दुनिया देखे तुझे सर उठाकर
ऐसी मंज़िल पे खड़ा हो जा।

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ये रात जब भी आती है,
औरों के लिए नींद, मेरे लिए यादें लाती है।

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चाँद देख चाँद की चाल देख,
रातभर जागे ये कमाल देख।

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ये कैसी मोहब्बत, ये कैसा दस्तूर है,
दिल तोड़ने वाले मेरा क्या क़सूर है।

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ख़ुशी के रास्ते में ग़म के पत्थर भी मिलेंगे,
सब्र करना, मख़मल के बिस्तर भी मिलेंगे।

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ज़िंदगी बीती जब बचपन में,
कोई भी फ़िक्र ना थी मन में।

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दूरियाँ यूँ लगातार बढ़ती गई,
मैं वहीं खड़ा, वो आगे बढ़ती गई।

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धोखा दिया तुमने
तो खा लिया हमने,
अब होशियार रहना है
ये सबक तुमसे पा लिया हमने।

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