कुछ ऐसे वो मेरे उधड़े ज़ख्मों को सी गया
मेरे भीतर के कड़वे ज़हर को वो पी गया
हार चुके थे हम अपने ही आप से जब
दिल फिर से उसके बेइंतहा इश्क़ में जी गया-
लिखती हूँ बस अपने ❤के अहसास
अनकही अनछुई ... read more
किसी समंदर की लहर में
दिल का क्या है, कुछ टुकड़े चुने
और लिखे गए अल्फ़ाज़ फिर बहर में
कतरा कतरा कर रात गुज़री
ज़रा सी आँख लगी है अभी सहर में
जागेगा मन तो पायेगा कि
सब हो गया तबाह, तूफ़ां के कहर में-
क्या पाया क्या खोया का हिसाब लेकर
नये और पुराने चैप्टर्स की किताब लेकर
गुज़र रहा है ये साल भी हर बार की तरह
कई अनसुलझे सवालों के जवाब लेकर-
कोई भी बात दिल को अब मेरे बहला नहीं सकती
लगी ठोकर जहाँ हर बार वो झुठला नहीं सकती
भुलाया था मेरा हर ज़ख्म भी मैंने तेरी ख़ातिर
मगर दिल बन गया पत्थर उसे पिघला नहीं सकती-
मोहब्बत नहीं हो तुम
हां इक आदत बन गये हो
रूह को जो मंदिर बना दे
वो इबादत बन गये हो
न ज़रूरत कोई न नाम है
सुकून भरा बस एहसास है
हर जज़्बात की महक है जिसमें
वो ही राहत बन गये हो
महकते से लम्हों को
बिखेर देते हो आस पास मेरे
दुआ सी बन मिले हो मुझे
मेरी आयत बन गये हो
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शुक्रिया है बहुत तुम्हारा
मुझे तन्हा जीना सिखा दिया
जल रहा था दीप जो मन में
देकर हवा खुद ही बुझा दिया
रास्तों पर मेरी नज़र
जो मुड़ मुड़ कर देखती थी
उन रास्तों पर तुमने
खुद पहरा बिठा दिया
चाहत तो नहीं थी दूर जाने की
मगर,
हमसफ़र से तुमने ही हमें
अजनबी बना दिया-
कुछ लम्हें ख़्वाब न हो सके
कुछ पन्ने किताब न हो सके
नजदीकियां इतनी गहरी हुई
दूरियों के हिसाब न हो सके-
एक पूरी दास्तां है
जो निभा रही है मुझे हर लम्हा
ओढ़कर चादर मुस्कुराहट की
सिखा रही है छाया में जलना
रुकती है पलभर नज़रों के सुस्ताने को
रेगिस्तान में दौड़ती है प्यास बुझाने को
हाँफती साँसों का हिसाब रखती है
गुजरी यादों की किताब रखती है
खामोशी , जो रखती है जेब में
एक पूरी दास्तां
हर लम्हा मुझे निभा रही है!!-
जो महक है तेरी मिट्टी में वो महक जहां में कहीं नहीं
जो चमक है तेरी हस्ती में वो चमक जहां में कहीं नहीं
है हवा यहाँ की जादू भरी जो आया इसका हो बैठा
जो झलक है तेरी संस्कृति में वो झलक जहां में कहीं नहीं-