महेश कुमार 'मैडी'   (महेश कुमार 'मैडी')
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Joined 9 April 2018


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Joined 9 April 2018

जब सही पछताओगे
तब अनकही हर बात समझ जाओगे

तुम लौटकर आना चाहोगे हमारे पास
मगर चाहकर भी वापस न आ पाओगे

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ये दिल चाहता है, तुझको देखना
और बस तुझको ही देखते जाना
चाहूँ मैं दरिया-ए-इश्क़ में उतरना,
बहना और बस बहते चले जाना।

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दरमियां हमारे
प्यार दोनों को ही जताना न आया
हो सकते थे एक-दूजे के 'हम-तुम'
मगर साथ जीने का बहाना न आया

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तुझ बिन कुछ अच्छा कहाँ लगता है
तेरे साथ अच्छा सारा जहाँ लगता है
जिसके बिना मुनासिब न हो ज़िंदगी
तू इस दिल को वो हमनवां लगता है

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मेरे सेलफ़ोन की रिंगटोन बदलकर अब,
'पहला नशा, पहला ख़ुमार' हो गई थी।
मैं हर पल बस उसको ही सोचता रहता,
अब वो मेरी बातों में शुमार हो गई थी।
हर घड़ी, हर पल बस वही दिखाई देती,
मैं प्यासा,वो रिमझिम फ़ुहार हो गई थी।
उसके बिना कुछ दिखाई न देता मुझको,
अब वो मेरे दिल का बुख़ार हो गई थी।
मैं सोचता, कुछ और सोचूँ उसके सिवा,
पर वो मोटे सूद वाला उधार हो गई थी।
हर तरफ़ उसका ही अक़्स नज़र आता,
अब वो नादां,दिल की पुकार हो गई थी।
सोचता कि उसके साथ ज़िन्दगी गुज़ार दूँ,
उसके बिना ये साँसें भी दुश्वार हो गई थी।
नहीं पता कि मैं क्या था, उसकी ख़ातिर,
पर मेरे लिए वो 'सारा संसार' हो गई थी।

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बस बताता नहीं, क्या ख़ता है हमारी

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हर किसी को बताई नहीं जाती

सोचते रहते हैं, नींद नहीं आती
कुछ रातें ऐसी होती हैं

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तुम हमेशा
आएंगी मुश्क़िलें बहुत, मगर तुम न थकना
अच्छा होता है बिन फल इच्छा कर्म करना
बस इसलिए चाहिए अच्छे से बेहतर करना

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जानती हो, ?
शायद इसलिए, कि
हम आपकी चाहत में मदहोश हैं।

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जो चाहकर भी भर न सके
तूने भुला दिया, भुलाना तुझको भी आसान होता
मगर तेरी दीवानगी में हम इतना भी कर न सके

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