मेरी कलम से ✍️   (मेरी कलम से)
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Joined 29 November 2021


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Joined 29 November 2021

सिर्फ साल बदला है हालात नहीं,
हालात बदले तब कुछ बात बने
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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घर, आँगन की सफाई में लगें हैँ रात दिन
दीवाली का त्यौहार आने वाला है।।
कभी जरा सी सफाई दिमाग़ के अंदर की
तुच्छ मानसिकता की भी कर दो
पूरा देश ही स्वच्छ नज़र आने लग जायेगा..।

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कहीं खो सा गया है वो बड़ा सा परिवार,
वो मिलकर की जाने वाली ढेरों सारी बात....

अब तो रिश्ते मोबाइल में सिमट कर रह गए हैँ...
खुशी हो गम सारे यहीं मिलकर बाँट लिए जाते हैँ।

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क्यों भेदभाव होता है, जब लड़की पीरियड्स से जाती
कभी मंदिर - कभी रसोई से, दूर बैठाई जाती है।
छुआछूत की दीवारे भी ऊँची उठ जाती है,
और औरत का सम्मान क्यूँ हमेशा घटाती है
भेदभाव का एक नया नज़रिया ये सबको बतलाती है।

मानता हुँ समाज की मानसिकता थोड़ी ओछी है,
पर पीरियड्स प्राकृतिक है,शरीर की संरचना का एक हिस्सा है
पीरियड्स होना अच्छा है.......।

औरत ही जगत जननी है,इससे आगे बढ़े पूरा संसार है।
न समझ सकूँ दर्द तुम्हारा, तो मुझ पर धिकार है,
पीरियड्स का दर्द शायद मैं न लिख पाऊँगा पर इतना लिखना चाहता हुँ
तेरे दर्द से मुझे तकलीफ होती है,क्यूंकि मैं एक बेटा हुँ , भाई हुँ , दोस्त हुँ.

हमेशा अपना हर फ़र्ज़ निभाऊंगा,बेशक तकलीफ तुम्हारी हो,
मैं हमेशा साथ निभाऊंगा...।
मत छुपा दर्द को अपने, शर्म से तू नाता तोड़,
नेचुरल है पीरियड्स हँस के अब सब से बोल....।
हँस के सब से बोल.....।।

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Akki

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" कोई ऐसा मिल जाय "

आवाज लगांऊ उसको, भागा वो चला आये
लाख परेशान करूँ, फिर भी जो मुस्कराये
मिलते तो कई हैँ मुसाफिर, जिंदगी के सफर में
बिन कहे मुझे समझ जाय, कोई ऐसा मिल जाय...।

वक्त अपना देखकर,साथ बहुत देते हैँ
देख मुसीबत सामने,हाथ छोड़ देते हैँ
अँधेरे में जो प्रदीप बन, रास्ता मुझे दिखाए
हाथ थाम लें मेरा, कोई ऐसा मिल जाय...।

टूट जाय हौंसला मेरा, मुझे टूटने से बचाये
प्रेरणास्रोत लोगों की, कहानियां मुझे सुनाएँ
असफलताओं से लड़कर, मुझे मंजिल से मिलवाये
खुशियों में शामिल हो मेरी, कोई ऐसा मिल जाय...।

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सच और झूठ के बीच 4 उंगलियों का अंतर है...।
सच वह है जो आँखों से देखा गया है और झूठ अक्सर कानों से सुनी बात होती है...।
और आंख और कान के बीच फासला 4 उंगलियों का है..।

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चली गयी जो तुम,यूँ मुँह मोड़कर
जरूरत थी ज़ब तुम्हारी, तब अकेला छोड़कर,
अब दोस्तों से हाल मेरा पूछती हो
जाकर बता दो उस बेवफा से,
हाँ मैं ठीक हुँ...।

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जब मैं छोटा था तो मुझे लगता था "छोटा अ बड़ा आ का सगा भाई है और 'इ' उसकी बहन,
फिर मुझे लगने लगा कि कुछ लफ़्ज़ कुछ लफ़्ज़ के करीबी रिश्तेदार है,
उन दिनों मुझे लगता था, आम और अमरूद दोस्त है, अमरूद मेरी तरह है जिसे आम से ज़्यादा शोहरत नही मिलती,
बरगद पीपल बुजुर्ग लगते और बाहर लगें यूकेलिप्टस मुझे अंग्रेज़ लगते,मानो वो हमारे यहाँ के हैं ही नही, उनके तने बेहद चिकने और सफेद ।

1, 2,3,4 भाई लगते 5 थोड़ा हँसमुख 6 ख़ामोश 7 और 9 नकचढे
उर्दू और हिंदी मौसी......इंग्लिश गर्लफ्रेंड.....
किताबें दोस्त लगती और डायरी बहन जैसी ।

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💔💔

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