हर कोई चर्चा मेरे वजूद का करता रहा,
पर तूने फासला बढ़ा हौसला मेरा तोड़ दिया।-
बेतरतीब घरौंदे
झोपड़-पट्टी और शिवालय
टेढ़े-मेढ़े जलमग्न रास्तों में
बसता है मेरा गाँव
तेरा शहर बदल गया, फिर भी,
जैसा था वैसा ही है मेरा गाँव।
तेरे शहर के खेतों के
ऊंचे दाम लग गए
आज भी गांव के खेतों पर
पलता है पूरा हिंदुस्तान।
ये जो तेरे शहर की ऊंची इमारत
तेरी अमीरी अभिव्यक्त करती हैं
मेरे गांव के हुनर से ही
तुझे अमीर करता है मेरा गांव।
तेरा शहर बदल गया, फिर भी,
जैसा था वैसा ही है मेरा गाँव।
तेरे शहर में जाने पर
चौखट से ही हाल-चाल
व दुख-दरद पूछ
लौटा देने का रिवाज है।
मेरे गांव में दरवाजे दरवाजे पर
बसता है संस्कार।
शायद मेरे गांव व तेरे शहर में
यही फर्क है।
इसलिये तो भारत के हृदय में
बसता है मेरा गांव।।
तेरा शहर बदल गया, फिर भी,
जैसा था वैसा ही है मेरा गाँव।-
जाने कैसा प्यार किये तुम,
जीवन बीच राह छोड़ दिये तुम,
रिश्तों की ना परवाह किए तुम,
कैसे मुझे बिन यार जिये तुम,
आँखें तेरी नम न हुयी,
तु थोड़ा भी गुमसुम ना हुई,
क्या तुमको मेरी याद न आयी,
या मुझबिन जीने की हो कसमें खायी
बड़ा गजब का प्रेम किये तुम,
मुझको तन्हा छोड़ दिये तुम,
खैर तुझे तेरा प्रेम मुबारक,
मै लिख दूंगा तुम बिन ही इबारत,
जीवन में आये स्वपन जगाये कंहा गये तुम,
क्यो मुझको अपनी यादों में उलझा गये तुम।-
ग़म में सुकून,
दर्द में राहत,
भय में हिम्मत,
शून्यता में सौम्यता।
भूख में भोजन,
चाह में चाय,
हर आह में
बस राह,
मुश्किलों में मुस्कान,
है बस यही पहचान
प्रेम का दूसरा नाम है मित्र…-
अगर आज आप अपने से बड़े का अनादर करते हैं तो यह मत भूलिएगा कल आप भी बड़े होंगे!
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तुम मेरे जीवन की
जीवन सागर हो,
प्रेम रस की
वह गागर हो,
जंहा है मेरे लिए
अलौकिक प्रेम।
विशालकाय पहाड़ की तरह
मेरे लिए ठोस इरादे,
झरनों की तरह
सुखद एहसास,
तव्बसुम की तरह
मन की एक एक बात।
चांद की तरह
जीवन का विश्वास,
नदी की धारा की तरह
जीवन की राह।
मेरे जीवन की
पहली और आखिरी,
प्यास तुम हो।
जंहा मेरा जीवन है
एक सुन्दर आधार
जिसे मैं करता हूं,
अपने से अधिक प्यार
हां वो तुम हो।-
नेताओं का दौर ए मुलाकात है, बस देखा किजीए,
मिला है दर्द तो उसे, कोने में दबा लीजिए।
यह राजनीति है, इसका दूसरा नाम तमाशा है।
एक कान से सुनिए, दूसरे से निकाला कीजिए।-
जिस राजनैतिक दल के नेता को जिस
जाति से नफ़रत है या वे उसे पसंद नहीं
करती तो उसे खुलकर बता देना चाहिए!
और साफ़-साफ़ उस जाति से कह देना
चाहिए की मुझे आपका वोट नहीं चाहिए!
लुका छिपी का खेल खेलने से अच्छा है
की सच बोलने का जिगर रखो!-
कुछ लोग अपने जैसा ही,
दूसरे को क्यों समझ लेते हैं,
यह उनकी नादानी है या चालाकी,
या उनकी आवारगी,
बेशर्म और बेशर्मी के हद वाले,
किस क़दर कितना गिर जाएँगे,
जो खुद गिरे हैं वह क्या किसी को,
बेवजह गिराएँगे….-