मेरी कलम से... आनन्द कुमार   (मेरी कलम से… आनन्द कुमार)
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शब्दों से कुछ-कुछ कह लेता हूं...
Joined 10 April 2018


शब्दों से कुछ-कुछ कह लेता हूं...
Joined 10 April 2018

आप अपने कर्तव्य व व्यवहार को अपने सास-ससुर के साथ जिस भी तरीक़े से निभा रही हैं और आप संतुष्ट हैं की आप जो कर रही हैं सही है! तो तैयार रहिए आपकी औलाद भी आपके साथ वही व्यवहार व कर्तव्य निभाने के लिए आतुर है! आप जो भी कर्तव्य निभाईं हैं आपकी बहू, आपका बेटा उसी तरीक़े का उससे बेस्ट आपके लिए करेगा!

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लूट लो, भर लो, चाहे सहेज लो जितना,
ख़ाली हाथ आए हो, और ख़ाली हाथ जाओगे!
हो फुरसत तो थोड़ी निकाल लो, उनके लिए,
जिनके साथ तुम कभी कहकहे लगाए हो…

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बातों को सोच समझकर ही नहीं, हमेशा खुद से खुद के लिए तौल कर अभिव्यक्त करें! यह सुकून देते हैं तो चुभते भी हैं!

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अगर हम तुम्हारे लिए अच्छे नहीं हैं तो तुम अपने लिए मुझसे बेहतर ढूँढ लो!

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नकारात्मक बातें करने के बाद “रेखा” ने राजनीति में सकारात्मक “रेखा” खींच अपने बड़प्पन का परिचय दिया है!
काश यह बदलाव सब में होता!

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“तलाक़” तीन शब्द से बना है लेकिन अंतिम के दो शब्द “त लाक” का मतलब अगर मनुष्य जीवन में समझ ले तो वह दो परिवारों को बिखरने, और रिश्तों को टूटने तथा अगर बच्चे हैं तो उन्हें समाज के अनगिनत सवालों का शिकार होने से बचा सकता है!
लेकिन सभी मौन हैं “जाति” और “धर्म” से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण विषय पर! पारिवारिक न्यायालय की अदालतों की गिनती बढ़ती जा रही है! इस महत्वपूर्ण रिश्तों को कलंकित करने वालो की संख्या में रोज इज़ाफ़ा हो रहा है और बेशर्म लोग अपनों की गलती देने की बजाय दूसरे पक्ष की बखिया उधेड़ने में लगे हैं! संसद व विधानसभा में बैठे लोग चुप्पी साधे हैं और यह समस्या कैंसर से भी तेज़ी से फैल रही है! हम आज़ादी का अमृत महोत्सव तो मनाए खूब पर परिवार ना रहेगा, यह अनमोल रिश्ता ना रहेगा तो फिर कैसा महोत्सव किसके लिए!
तलाक़ के क़रीब आप जा रहे हैं तो वह त लाक भी आपको इंगित कर रहा है। इसके महत्व को समझिए कोशिश करिए की ऐसी अशुभ घड़ी किसी की ना आए! तलाक़ के बाद भी लोग घुट कर जी रहे हैं! फिर तलाक़ से क्या फ़ायदा!

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इश्क़, मोहब्बत, अनुराग, प्रेम, सब एक ही पहलू है,
हर शब्द में जब तुम्हें सोचता हूँ तो, अलग सी लगती हो।
यह मेरी दीवानगी है, या भर रहे जख्मों का सुकून है,
या जुनून है, तेरा हो जाने का, तुम में खो जाने का।
दूर होकर भी तेरे पास होता हूँ, मैं इस कदर रहता हूँ,
मुहब्बत सीखी है, बस उसी में रमता रहता हूँ,
मैं इश्क़ की चाह रख, बस प्रेम को पूजता हूँ ।

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कितना लिखूँ तुम्हारे बारे में, लिखने लगूँ तो पूरी किताब हो जाए,
सच में उड़ेल दूँ अगर इश्क़ अपना, तो पूरी कायनात हो जाए ।

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काश !
समझ पाता कोई
मेरे मन की बात,
मन में मेरे ऊँची उड़ान का
देख पाता कोई मेरा छलांग,
मज़बूत इरादों की बदौलत
बढ़ रहा हूँ, धीरे-धीरे
अपनी मंजिल की ओर,
तय है, मिलेगा, जुनून है,
है मेरा यह विश्वास…

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समस्या “इंसानियत” में है और नाहक “धर्म” बदनाम है!

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