में और शायरी  
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मे शायर तो नही....
Joined 23 January 2018


मे शायर तो नही....
Joined 23 January 2018

वजह कुछ और थी, कुछ और ही बताते रहे।

अपने थे इसलिये, कुछ ज्यादा ही सताते रहे।

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मैं क्यो बदनाम करू इस पाक महोब्बत को......


महबूब तो हमारा ही बेवफाह था साहब,

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इश्क़ के चंद आख़िरी लफ़्ज कुछ इस तरह होते है,
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तुम्हे अच्छा साथी मिले और तुम हमेशा खुश रहो !!

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“अब ना मैं हूँ ना बाक़ी
हैं ज़माने मेरे,
फिर भी मशहूर हैं
शहरों में फ़साने मेरे...”

अलविदा,
राहत इंदौरी साहब।

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रिश्ता उस से इस कदर मेरा बढ़ने लगा...!!

मैं उसे लिखने लगी , और वो मुझे पढ़ने लगा...!!

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उनकी फ़ितरत है वो दर्द देने की रस्म अदा कर रहे हैं ,

हम भी उसूलों के पक्के हैं दर्द सहकर भी वफ़ा कर रहे हैं....

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तू कर मुझसे वादा आने का मेरी मौत पर!!!

फिर देख मेरी भी जिद तुझे आज ही ना बुला लू तो कहना!!!

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यही सबूत है मेरी शराफ़त का ग़ालिब,

के मेरे शहर में मुझे कोई जानता ही नही.

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तेरे इश्क़ में भी, ठंड जैसी मजबूरी है...!!

कितना भी बचूं, पर लगना जरूरी है...!!!!

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मुझे ख़ुद पर इतना तो यक़ीन है के रोयेगा
वो सख़्श मुझे वापस पाने के लिये !!

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