Mehjabin I Patel   (Mehjabin i patel)
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Joined 18 August 2019


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28 MAR 2020 AT 22:30

वक्त की वक्त से फरियाद क्यों करें
जो चल बसा है लम्हा उसे याद क्यों करें ।

जख्म वो भर जाऐंगे वक्त के मरहम से
इन जख्मो का दर-बदर एलान क्यों करें ?

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28 MAR 2020 AT 22:22

भूल बैठे कदम मेरे उन गलियों की राहों को
जीन राहों पे हमारे कदमों के निशां बेशुमार थे ।

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28 MAR 2020 AT 20:58

घरों में बैठ कर औरों की वकालत करने वालो,
हजारों राह पर भटके मुसाफिर का पता पूछो

नुमाईश करते हो बडी ही शान से अपनी अक्लमंदी की
कभी उस अजीमुश्शान(कुदरत) की नाराजी की वजह ढूँढो

कहीं शहरों के कोनों में, कहीं वीरान रास्तों पे,
वो बीखरते हुए परिवारों की बेबसी की वजह ढूँढो

ये दुनिया तो फानी सफर हे, कल खत्म हो जाएगा,
तुम अपने बाद भी अपना नाम बाकी रखने की सदा ढूँढो

वो बेनियाझ, बेमतलब, बेहीसाब देने वाला हे,
तुम एकबार अपने रब को राजी रखनें की अदा ढूँढो

वो ले लेता है अपना काम, जरूरत पडने पर परिंदों से,
ऐ इन्सानों तुम अपने ही गिरेहबान में अपनी खता ढूँढो।


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22 MAR 2020 AT 20:38

आज फिर मेरे शहर की फिजाऐं थम गई
वक्त के कहर से

गरीब भूख से, तो अमीर डर से
हार जाता है,

कुदरत की लाठी चलने पर,
जमाना हार जाता हे ।







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29 FEB 2020 AT 20:00

जिस्मानी रिश्ते को मुहब्बत का नाम देना,
ये तो मुहब्बत की तोहीन है।

गुमशुदा है आजकल वो रूहानी जज्बात,

क्यूँ की, इस दौर-ए जहालत में हर कोइ
नंगे नाच का शौकीन है।

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17 JAN 2020 AT 14:34

तमाम कोशिशों के बावजूद, ना मुकम्मल हुआ मेरा वजूद
में खुदगर्जि के सहारे, खुद की तलाश में जो निकला था ।

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10 JAN 2020 AT 22:30

क्यूँ जगाई मुझमें ख्वाहिश, "ए खुदा" आसमां को छूने की?

मुझे उदना सीखाने वाले ही जब मेरे पंख के कातिल है ।

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9 JAN 2020 AT 21:39

अच्छा होता मेरी माँ मुझे कोख में मार देती
हैवानियत की आग मेरी इज्जत तो न लेती।

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13 OCT 2019 AT 15:00

ओनलाईन जिंदगी का भी एक सयाना अंदाज है यारो
जो हमे अपनो से दूर ओर गैरों के करीब ले जाता हे,

मृगजल सा खिंचाव हे ईसमे,

जो हकीकतों से परे होकर भ्रम को दावत देता है ।

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6 SEP 2019 AT 20:27

हालातों के हाथ बिकने वाले लोग कभी-कभी परवरिश को भूल जाते हैं,

वरना परवरिश ही एक एसी चीज है जो इन्सान को गलत कामों से रोक सके ।

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