विदा कर जिमेदारियों से पीछा छुड़ाते हैं,
सब जानकर भी अनजान बन जाते हैं,
हम वो इज्जतदार लोग हैं जनाब,
जो पति के पीटने पर भी बेटी को चुप रहना सीखाते हैं,
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पराए रिश्तों की खातिर अपनी बेटी से रिश्ता तोड़ आते हैं
मान बढ़ाते-बढ़ाते सच को चार दिवारी में दबा आते हैं,
हम वो इज्जतदार लोग हैं जनाब,
जो नाक की खातिर अपने खून का गला घोंट आते हैं,
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बात हक की हो तो मौन खड़े रह जाते है,
चार लोगों की खातिर बेटी पर सब जुल्म सह जाते है,
हम वो इज्जतदार लोग हैं जनाब,
जो इज़्ज़त की खातिर बेटी के अरमानों को ढह आते हैं…-
अधूरी कल्पनाएं…….
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छोटी सी बात प इतना बड़ा कदम ठाणा ठीक हैं के.?
अपने अतीत के कारण कल त डर जाणा ठीक है के..?
शांत मन त एक बार फेर विचार कर के देख तो,
जिंदगी की ठोकरां त हारके मर जाणा ठीक हैं के...?
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जो चला गया वो शख्स, मां बाबू त भी प्यारा होग्या के..?
बाबू का गुस्सा उसके त्याग त भी भारया होग्या के..?
हार जीत ,लाभ हानि, एक ही सिक्के के दो पहलू हैं,
एक पेपर म फेल होण प तूं सब तै नकारा होग्या के..?
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हल्के से हवा के झोंके तै न्यू बिखर जाणा ठीक है के..?
बीच मझधार इकतरफा सफ़र जाणा ठीक है के..?
शांत मन त एक बार फेर विचार कर के देख तो,
जिंदगी की ठोकरां त हारके मर जाणा ठीक हैं के...?-
रोज बात घुमाज्या है, प्यार है तो जता मनै,
कितनी प्यारी हुं तनै, आज सारी खोल बता मनै,
caption*-
खुद बुराइयों का पुतला होके, मैंने पुतला गैर का जलाया हैं,
सच का गला घोंट हाथों से, मैंने विजयदिवस मनाया हैं,
अनगिनत फरेबी मुखोटों के पीछे छुपा खुद को,
मैंने उस दश मुँह वाले रावण को गलत ठहराया हैं....-
कभी बना लेता हैं हमराज़ मुझे,
कभी वो मुझसे नज़रें चुराने लगता है,
कभी सहेजता है ख़ुद का हिस्सा समझकर,
कभी वो मेरे हिस्सों को जलाने लगता है,
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कभी दिनभर रहता हैं बस मेरे ही आग़ोश में,
कभी सालों तक मुझसे मुँह छुपाता रहता है,
कभी करता हैं अपने बेक़दर रवैये को उजागर,
कभी अपनी बेवफ़ाई के क़िस्से बताता रहता हैं,
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कभी बैठा रहता है ख़ामोश घंटों,
कभी कल्पना कहकर सच बताने लगता है,
कभी सहेजता है ख़ुद का हिस्सा समझकर,
कभी वो मेरे हिस्सों को जलाने लगता है……..-
बारहवीं होते ही घर म बोझ बता दी गई,
मेरी 17 की उम्र भी सबतै छिपा दी गई,
मेरे सपन्या की घेटी सरेआम दबा दी गई,
मैं एक सरकारी नौकरी कै ब्हया दी गई,
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अपणे हक न अपणी आँख्या आगै जाण देणा,
खतरनाक है.....
काल की यारी म चूल्हे तक की पीछाण देणा,
खतरनाक है......
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बोलण न भी तरसते रहवै, रिश्ते म बेरुखी,
खतरनाक है......
सच न भीतर दाबके, मौके की चुप्पी,
खतरनाक है......
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भगवान का कद भी छोटा करदे वो पद,
खतरनाक है......
घर की हर एक चीज बिकवादे वा लत,
खतरनाक है......
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गाम प बट्टा ला दे, वा चढ़ती जवानी,
खतरनाक है......
चूल्हे म घास उगादे,वा दुश्मनी ख़ानदानी,
खतरनाक है......
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दो भाईयां न दुश्मन करदे,वा छोटी सी राई,
खतरनाक है......
दिखावटी ज्ञान त भरी,सुमित तेरी कविताई,
खतरनाक है......-
जिंदगी के हर दुःख सुख समाए हो जिसमें,
क्यूं न एक इसी कविता लिखी जावै,
हर एक अणबोल न सुण लेवा,
क्यूं न एक इसी तरकीब सीखी जावै।।
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परियां न उड़ण देवां शहर की खुली हवा म,
क्यूं न इस रोक टोक त ऊपर उठा जावै,
हर बच्चे के चेहरे प सिर्फ़ ओर सिर्फ खुशी हो,
क्यूं न कोई खुशियाँ का गोदाम लुट्या जावै।।
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मजदूर के बालक भी पढ़े अमीरां गेल बैठ,
क्यूं न इस अमीर गरीब की दिवार न तोड़ दिया जावै,
धर्म के नाम प लड़ते लड़ते उम्र बीत गी,
क्यूं न इब हाथ ठाण त पहला हाथ जोड़ लिया जावै।।
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बाप न बेटी के बह्या म दहेज़ देणा ना पड़ै,
क्यूं न एक इसी रिवाज बनाई जावै,
कोई किसे की तरक़्क़ी देख मन म खार न ल्यावै,
क्यूँ न सब गेल इसी लिहाज बनाई जावै।।
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सही गलत हमेशा बंटयां रह दो भागां म,
क्यूं न एक इसी लकीर खींचीं जावै,
जिंदगी के हर दुःख सुख समाए हो जिसमें,
क्यूं न एक इसी कविता लिखी जावै,-