Mehak Sharma   (Mehak Sharma)
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IIT KHARAGPUR
Mechanical Engineering
Joined 16 October 2017


IIT KHARAGPUR
Mechanical Engineering
Joined 16 October 2017
8 MAR AT 21:37

गुल : फूल
रुख़सती : विदाई
गेसू : बाल
लहद : क़ब्र
फ़राग़त : आनंद
हरारत : गर्माहट
गुलशन : बगीचा
अज़िय्यत : तकलीफ़
मा'श़ूक : प्रेमपात्र
रंग-ए-चमन : बगीचे का रंग


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22 JUN 2021 AT 18:48

मुस्कराते थे वो
आँखों में आँसू लेकर,
खुलकर रोना उनका
शायद उन्हें रास नहीं आया,,
जो उनके हर गम को
आँखों से रिहा कर दे,
शायद, उन्हें मिलने अभी तक,
वो खास नहीं आया,,
दूरियाँ पसंद हैं उन्हें,
बातें भी चाँद से करते हैं,
क्यों उनके हिस्से कभी
कुऱबत का अहसास नहीं आया,,
तारों-से जलते हैं वो
रातों में ठंडा चाँद देखकर,
वो चाँद क्यों कभी
उनके पास नहीं आया,,
वो ख़्वाबों में उलझे हैं
हमें इश्क़ है उनकी हकीक़त से,
क्यों उन्हें अब तलक
हमारे इश्क़ का
कयास नहीं आया!

~महक

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5 JUN 2021 AT 0:58

बेबाक-सा वो इश्क़ अब बाकी बचा बस हर्फ़ में,
सहमें हुए हर अश्क़ की है सहमती हर जर्ब़ में,
पासबाँ दिल में तेरा हर राज़ अब नाराज़ है,
नज्म़ में ज़ख्मी पड़े मेरे सभी अल्फाज़ हैं,
बिखरे हुए इस इश्क़ का फिर भी यही इशारा है..
हारा है ये दिल हमने ये हारा दिल तुम्हारा है।

माज़रत की है ज़रूरत इन्तेहा अब हो चुकी,
तेरी रिहायत से मैं अपनी बंदिशों में खो चुकी,
ये इश्क़ की कश्ती मेरे अश्कों में डूबी है पड़ी,
ख़्वाबों में तेरे लौटने की आहटें हैं हर घड़ी,
तू दूर है दस्तूर है पर क्या कुसूर हमारा है..
हारा है ये दिल हमने ये हारा दिल तुम्हारा है।

(पार्ट-6)


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28 MAY 2021 AT 18:38

बहुत दौड़े थे नंगे पांव धूप में तेरे लिए,
सोचा था आएगी कोई रात नए सवेरे लिए,
ये इंतज़ार से भरा सराब नहीं चाहिए,
बस! अब मुझे कोई ख्वाब नहीं चाहिए।

अंतर्मन में तेरी चौखट खटखटाने का शोर था,
इन्हीं हाथों से कल लिखा था
मगर वो कल कुछ और था,
अब मुझे मेरी बेबसी का हिसाब नहीं चाहिए,
बस! अब मुझे कोई ख्वाब नहीं चाहिए।

खुशी थी कि खुशी होगी
जो एक बार तू मिला मुझे,
मिलकर भी तू ना मिला है
बस यही है गिला मुझे,
अब यह आधी-सी सफलता का
नवाब नहीं चाहिए,
बस! अब मुझे कोई ख्वाब नहीं चाहिए।

~महक

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21 MAY 2021 AT 11:04

तटणी तट के पाषाण-से,
कण-कण हो बहते ध्यान से,
तुम इतने स्थिर क्यों हो कहो?
पाषाण से कंकर बनो,
गंगा के तुम शंकर बनो!

जीवित मगर श्मशान-से,
अग्नि में जलते प्राण-से,
तुम इतने मृत क्यों हो कहो?
श्मशान से तुम घर बनो,
जीवित हृदय का स्वर बनो!

कोलाहल में सुनसान-से,
बिन घुँघरू की पैजान-से,
तुम इतने मौन क्यों हो कहो?
सुनसान से मृत्युंजय बनो,
धृतराष्ट्र के संजय बनो!

~महक



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24 APR 2021 AT 20:05

मैं लिख कर
अमर कर तो देती हूँ
भावनाएँ
मगर
वो भावनाएँ
जब मरती हैं मुझमें
तो पढ़ नहीं पाती
अपनी ही लिखी
कविताएँ।

~महक

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6 APR 2021 AT 20:39

स्याही से नहीं,
काजल से
लिखा है तुमको,
पलकों पर पड़ी
बूँदें घोलकर!
कागज पर नहीं,
चेहरे पर
लिखा है तुमको,
आँखों से
बहे काजल को,
कविता बोलकर!

~महक

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17 MAR 2021 AT 10:42

उसके कदमों में अपना आत्मसम्मान रख देना इश्क़ नहीं,
उसके आत्मसम्मान की रक्षा करना इश्क़ है।

~महक

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6 MAR 2021 AT 14:17

....

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28 FEB 2021 AT 22:20

लकीरें तकाज़ा कर रही हैं हिज्र हमारा,
पर कामिल रहेगा मेरे हृदय में इश्क़ तुम्हारा।
लकीरें मग्ल़ूब हैं वस्ल-ए-इश्क़ से तो क्या हुआ,
यूँ ही हर हर्फ में कर लूँगी मैं जिक्र तुम्हारा।
लकीरें लिखती हैं रीत, प्रीत कौन मानता है?
फ़र्दा सिन्दूर भरूँगी मैं, मेरा इश्क़ कौन जानता है!
लकीरें पढ़ी-लिखी हैं मेरा इश्क़ जिहालत सा है,
ये समाज इन्साफ़ न करने वाली वकालत सा है।
लकीरें मुकर्रम हैं और तुम ना-तवाँ से दीवाने,
तुम रातों में रोकर तकिए भिगोना,
मैं भी रख लूँगी तुम्हारी तस्वीर सिराहने।
लकीरें रास्ता है मेरा जो निलय तक नहीं जाता,
काश! मुझमे इन लकीरों से मक्र करने का साहस आ पाता।
~महक

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