गुल : फूल
रुख़सती : विदाई
गेसू : बाल
लहद : क़ब्र
फ़राग़त : आनंद
हरारत : गर्माहट
गुलशन : बगीचा
अज़िय्यत : तकलीफ़
मा'श़ूक : प्रेमपात्र
रंग-ए-चमन : बगीचे का रंग
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Mechanical Engineering
Oh diary dear! She wrote and blushed,
She wrote his name and a shiver rushed,
Oh love! You know I want you here,
Wanna hold you tight for a second mere!
(read caption)
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तुम सार्थक हो सारथी,
हम निरर्थक से रथ बिन तुम्हारे!
भटके हुऐ अर्जुन थे हम,
तुम ज्ञान 'गीता' ले पधारे!
इस शव में औ केशव! जो तुमने,
ज्ञान प्राण थे उतारे!
मोक्ष दायिनी थे बने,
औ सुदर्शिनी! दर्शन तुम्हारे..-
मुस्कराते थे वो
आँखों में आँसू लेकर,
खुलकर रोना उनका
शायद उन्हें रास नहीं आया,,
जो उनके हर गम को
आँखों से रिहा कर दे,
शायद, उन्हें मिलने अभी तक,
वो खास नहीं आया,,
दूरियाँ पसंद हैं उन्हें,
बातें भी चाँद से करते हैं,
क्यों उनके हिस्से कभी
कुऱबत का अहसास नहीं आया,,
तारों-से जलते हैं वो
रातों में ठंडा चाँद देखकर,
वो चाँद क्यों कभी
उनके पास नहीं आया,,
वो ख़्वाबों में उलझे हैं
हमें इश्क़ है उनकी हकीक़त से,
क्यों उन्हें अब तलक
हमारे इश्क़ का
कयास नहीं आया!
~महक-
बेबाक-सा वो इश्क़ अब बाकी बचा बस हर्फ़ में,
सहमें हुए हर अश्क़ की है सहमती हर जर्ब़ में,
पासबाँ दिल में तेरा हर राज़ अब नाराज़ है,
नज्म़ में ज़ख्मी पड़े मेरे सभी अल्फाज़ हैं,
बिखरे हुए इस इश्क़ का फिर भी यही इशारा है..
हारा है ये दिल हमने ये हारा दिल तुम्हारा है।
माज़रत की है ज़रूरत इन्तेहा अब हो चुकी,
तेरी रिहायत से मैं अपनी बंदिशों में खो चुकी,
ये इश्क़ की कश्ती मेरे अश्कों में डूबी है पड़ी,
ख़्वाबों में तेरे लौटने की आहटें हैं हर घड़ी,
तू दूर है दस्तूर है पर क्या कुसूर हमारा है..
हारा है ये दिल हमने ये हारा दिल तुम्हारा है।
(पार्ट-6)
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बहुत दौड़े थे नंगे पांव धूप में तेरे लिए,
सोचा था आएगी कोई रात नए सवेरे लिए,
ये इंतज़ार से भरा सराब नहीं चाहिए,
बस! अब मुझे कोई ख्वाब नहीं चाहिए।
अंतर्मन में तेरी चौखट खटखटाने का शोर था,
इन्हीं हाथों से कल लिखा था
मगर वो कल कुछ और था,
अब मुझे मेरी बेबसी का हिसाब नहीं चाहिए,
बस! अब मुझे कोई ख्वाब नहीं चाहिए।
खुशी थी कि खुशी होगी
जो एक बार तू मिला मुझे,
मिलकर भी तू ना मिला है
बस यही है गिला मुझे,
अब यह आधी-सी सफलता का
नवाब नहीं चाहिए,
बस! अब मुझे कोई ख्वाब नहीं चाहिए।
~महक-
तटणी तट के पाषाण-से,
कण-कण हो बहते ध्यान से,
तुम इतने स्थिर क्यों हो कहो?
पाषाण से कंकर बनो,
गंगा के तुम शंकर बनो!
जीवित मगर श्मशान-से,
अग्नि में जलते प्राण-से,
तुम इतने मृत क्यों हो कहो?
श्मशान से तुम घर बनो,
जीवित हृदय का स्वर बनो!
कोलाहल में सुनसान-से,
बिन घुँघरू की पैजान-से,
तुम इतने मौन क्यों हो कहो?
सुनसान से मृत्युंजय बनो,
धृतराष्ट्र के संजय बनो!
~महक
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मैं लिख कर
अमर कर तो देती हूँ
भावनाएँ
मगर
वो भावनाएँ
जब मरती हैं मुझमें
तो पढ़ नहीं पाती
अपनी ही लिखी
कविताएँ।
~महक
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स्याही से नहीं,
काजल से
लिखा है तुमको,
पलकों पर पड़ी
बूँदें घोलकर!
कागज पर नहीं,
चेहरे पर
लिखा है तुमको,
आँखों से
बहे काजल को,
कविता बोलकर!
~महक-
उसके कदमों में अपना आत्मसम्मान रख देना इश्क़ नहीं,
उसके आत्मसम्मान की रक्षा करना इश्क़ है।
~महक-