ज़िन्दगी हम तेरे मजदूर,
तुझे बनाने में लगे हैं...
हज़ारों ख्वाहिशे लेके,
हर दिन तुझे आज़माने में लगे है।
ज़िन्दगी हम तेरे मजदूर...
वक़्त फिसला,
और मेरे साथ साथ तू भी बड़ी होगयी...
सपनो के कुछ टूटे हुए पत्थरो के बीच भी देख...
तू किस ताकत से ख़ड़ी होगयी।
कभी धूप दिखाई खुशियों की,
तो कभी गमो की बारिशो से ढका है मुझे,
मेहेरबानी, एहसान है तेरे उन कमरों का...
जिहोने हर हाल में प्यार से संजो कर रखा है मुझे।
न जाने कितनी मुश्क़िलो से झूझ कर हमने...
एक दूसरे का साथ निभाया है...
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना,
मुझे तुझसे ही तो आया है।
हाँ...कुछ छेद अभी भी रह गए है दीवारों में भरने को...
मगर मेहनत जारी हैं, यकीन रख,
है जबतक तू साथ मेरे लड़ने को।
चल ए ज़िन्दगी , बेख़ौफ़ होकर फिर आगे बढ़ते है...
कला और कलाकार के जैसे एक दूसरे से फिर इश्क़ करते है।
मैं तुझे सवारूँगा हर रोज़,
तू मुझे संभाल लेना
कभी जो थक जाऊ मैं,
तो मुझे बस इतना खयाल देना...
की कितने दिनों का सुकून और कितनी रातो की नींद गयी है तुझे यहाँ तक लाने में,
मेने खुद को झोंक दिया है, ए ज़िन्दगी तुझे घर बनाने में
ज़िन्दगी हम तेरे मजदूर।
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