बे-सहारों को और बेसहारा किया जा रहा है
हुकूमत का फर्ज ऐसे पूरा किया जा रहा है
कोई जो बात करें अवाम के हक़ की खातिर
धर्म का वास्ता दे कर किनारा किया जा रहा है
कुछ रईसों की दौलत में जो कुछ कमी आई
हमारी जेब से पूरा खसारा किया जा रहा है
वो जिनका नाम तक लेने से तुम कतराते हो
उन्हीं की महकूमी का इशारा किया जा रहा है
अब्र ये काली रात और कितनी देर ठहरेगी
कब सुबह होगी ये सोच गुजरा किया जा रहा है-
हम तेरा इंतज़ार न करें तो क्या करें
दिल को बेकरार न करें तो क्या करें
वो आने वाले हैं, आ रहे हैं, आए हैं
उम्मीद बार बार न करें तो क्या करें
गुमान ये भी के वो हैं रकीब के साथ
गुमान बेकार, न करें तो क्या करें
वो आज न आए, चलो कल ही सही
राह गुलज़ार न करें तो क्या करें
अब्र उस बेवफ़ा से क्या शिकवा
हम इज़हार न करें तो क्या करें-
तुम्हारे साथ जो गुजारे थे
दिन वो क्या सच में ही हमारे थे
राह तकना तेरी मायूसी से
हाय हम कितने तब बेचारे थे
याद कोई नहीं अब याद आती
लम्हे वो कीमती बिसारे थे
तेरी आवाज़ नही मुद्दत से
नाम कितना तेरा पुकारे थे
उम्र भर अब्र रहेगा तन्हा
कल तक उनके उसे सहारे थे-
मै कोई कहानी नहीं हूं
वाकिया हूं, जुबानी नहीं हूं
तल्ख लफ्जों में लिखो मुझे
हादसा हूं रूमानी नहीं हूं
लौह ए जहां पे बिखरा हूं
हकीकत हूं रवानी नहीं हूं
क्यों उमर ए दराज मांगू
जिंदगी हूं जवानी नहीं हूं
दिल तोड़ कर कहती है मुझे
माशुका हूं सयानी नहीं हूं
अब्र नसीब नहीं जलना
सूखा हूं दहानी नहीं हूं-
आज एक वाक़या हुआ है अजीब
दोस्त एक बन गया है मेरा रक़ीब
मुझ पे है संगज़नी हर सम्त से
सब से आगे है उस में मेरा हबीब
मेरी कोशिश मुक़म्मल थी मगर
चाहता है कुछ और मेरा नसीब
उनके जलवों की खूब तारीफें
ज़हन से उनके नही कोई क़रीब
एक नया घोंसला बनाते है आज
बाद हर तूफान के कहें अंदलीब-
भरोसा किस पे करें हम कोई काबिल नही है
बीच दरिया में है कश्ती कोई साहिल नहीं है
खुदा को ढूंढने वालों ये बात याद रहे
तुम्हारे जैसा जहां में कोई बातिल नहीं है
जला के दुनिया को, घर में रौशनी कर ली
अरे मरदूद तेरे जैसा कोई काहिल नहीं है
किया जो वादा रखो याद निभाना होगा
यहां है चुस्त सारे अब कोई गाफिल नहीं है
मरोगे राहे वफा में, तो स्वर्ग पाओगे
बगैर प्यार के जीना कोई हासिल नहीं है
अब्र तू जानता है राज़ जहां के सारे
सारे जहां में तुझसा कोई आकिल नहीं है-
क्यों है जुमूद क्यों है इंतिशार क्या कहिए
अपनी तबाही का है इंतज़ार क्या कहिए
वो ख़फा हैं तो नहीं कोई कसूर उनका
है खुदसे हम भी बेज़ार क्या कहिए
बढाके तेज किया था हमने जो नाखून
पलट के करता है हम ही पे वार क्या कहिए
अमां वो दिन गए जां तुम पे हार देते थे
कौन अब करता है उस तरह प्यार क्या कहिए
नहीं वो वस्ल की रात वो इश्क के किस्से
खयाल भी तेरा हुआ दुश्वार क्या कहिए
सफर में अब्र है नहीं मिलती मंज़िल
तमाम उम्र भटकने के हैं आसार क्या कहिए-
रह-ए-वफ़ा में एक ऐसा भी मकाम आया
जुनूँ हमारा ना कुछ हमारे काम आया
तेरे खयाल की छांव को लिए सर पर
मैं दश्त-दश्त घूम के तमाम आया
मुझे यकीं था वो भूल चुका है मुझको
और ऐसे दौर में उसका मुझे सलाम आया
मुझे जो पूछते हैं लोग क्या मेरी तारीफ
मेरी जुबां पे मेरे साथ तेरा नाम आया
नहीं है अब्र का सानी कोई वो यक्ता है
उसकी बातों में ये ज़िक्र सुबहो-शाम आया-
कभी शुमार था तो कभी बे-हिसाबी रही
हमारी उम्र भी क्या बा-अज़ाबी रही
भरोसा करते रहें सफर में रहजनों पे
के तबीयत में अपनी एक ही खराबी रही
बचे न जेब में पैसे तो कोई बात नही
अदाएं अपनी हमेशा वही नवाबी रहीं
एक चेहरे पे कई चेहरे लगाए हैं लोग
भली वो सुरतें थी जो सदा हिजाबी रहीं
यहां पे तर्के मय करते हो वहां जाम पे जाम
अब्र तुमको न अब शर्म जरा भी रहीं-
मैंने वफा निभाई अब इसके बाद क्या
बदले में जफा पाई अब इसके बाद क्या?
महफिल में आए वो और मुलाकात भी हुई
और हों गई रुसवाई अब इसके बाद क्या?
मैखाने जाने को अब जी नही है करता
उसने वो मय पिलाई अब इसके बाद क्या?
रस्ते में गिर पड़ा है गश खाके एक दिवाना
देता जहां दुहाई अब इसके बाद क्या?
तेरी नज़र से रौशन घर अब्र का होता था
क्या तीरगी है छाई अब इसके बाद क्या?-